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________________ मोक्षाधिकार ५२५ महिमा शुद्धो भवन्मुच्यते ।। १६१।। बंधच्छेदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेतन् नित्योद्योतस्फुटितसहजावस्थमेकांतशुद्धं । एकाकारस्वरसभरतोऽत्यंतगंभीरधोरं पूर्ण ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि ।। १६२॥ इति मोक्षो निकांत: । इति श्रीमदमृतचंद्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्याती मोक्षप्ररूपक: अष्टमोऽङ्कः ।। ८ ।। अगर्दा सोही शुद्धिः अमयकुभो अमृतकुंभ:-प्रथमा एकवचन ।। ३०६-३०७॥ पुरुषोंको बन्धकारी होनेसे विषकुम्भ है । ५- तृतीयभूमिका अर्थात् निश्चयप्रतिक्रमरणरूप वोतराग अप्रतिक्रमण स्वयं शुद्धात्मसिद्धिरूप होने से सर्वदोषों को समूल नष्ट करता है प्रतः यह जानिज नाश्रित अप्रतिक्रमण साक्षात् अमृतकम्भ है । - ज्ञानिजनाधित अप्रतिक्रमणका संबंध हो तो द्रव्यप्रतिक्रमण भी अमृतकुम्भ कहलाता है। १०- वास्तवमें प्रात्मा ज्ञानिजनानित अप्रतिक्रमणरूप तृतीय भूमिका द्वारा ही निरपराध होता है । ११-- तृतीय भूमिकाके अर्थात् निश्चयप्रतिक्रमणके प्रभावमें द्रव्यप्रतिक्रमण भी अपराध ही है । १२- द्रव्यप्रतिक्रमण तृतीयभुमिकाके लिये अर्थात् निर्विकल्प समाधि के लिये ही किया जाता है । १३- चरणानुयोगमें द्रव्यप्रतिक्रमणको अमृतकुम्भ कहा है वह एक विधानकी दृष्टि से युक्त है, किन्तु निश्चयप्रतिक्रमणके बिना मात्र द्रव्यप्रतिक्रमणसे मुक्ति नहीं है यह तथ्य भी माथ-साथ जानना । १४प्रतिक्रमण अप्रतिक्रमणका अगोचर अप्रतिक्रमणरूप शुद्धात्मसिद्धिलक्षण निश्चयप्रतिक्रमण हो अलौकिक सिद्धि प्रदान करता है। १५-- उक्त १४ बातें प्रतिसरण, परिहार, धारणा, निवृत्ति, निन्दा, गहीं ब शुद्धिके विषयमें भी घटित करना । सिद्धान्त-१-- ज्ञानिजनाश्रित अप्रतिक्रमण शुद्धात्मतत्वकी परम अभेद प्राराधना है। २- अज्ञानिजनाश्रित अप्रतिक्रमण विकारोंमें अभेदबुद्धिरूप है । दृष्टि---१- शुद्धनय (४६)।२- अशुद्धनिश्चयन य (४७)। प्रयोग- प्रज्ञानिजनाश्रित प्रप्रतिक्रमणको सर्वथा छोड़कर सरागचारित्रसे गुजर कर प्रतिक्रमणादि करते हुए निश्चयप्रतिक्रमणमें बिहार कर प्रतिक्रमण प्रप्रतिक्रमण प्रादि सर्व विकल्पोंके अगोचर परमोक्षासंयममें रहनेका पौरुष करना ।। ३०६-३०७ ।। इति श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचित समयसार व उसकी श्रीमदमृतचंद्रसूरिविरचित समयसारव्याख्या प्रात्मख्यातिकी सहजानन्दसप्तदशाङ्गी टीकामें मोक्षप्ररूपक पाठवां अंक समाप्त हुआ।
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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