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________________ ५२० समयसार ननु किमनेन शुद्धात्मोपासनप्रयासेन यतः प्रतिक्रमणादिनव निरपराधो भवस्थात्मा सापराधस्याप्रतिक्रमणादेस्तदनपोहकत्वेन्द्र विषकुम्भले सति प्रतिक्रमणदिस्तदपोहकत्वनामृतकुम्भत्वात् । उक्तं च व्यवहाराचारसूत्रे-अपडिकमणं अपडिसरणं अप्पडिहारो अधारणा चेव । परिणयत्ती य अणिदाऽगरुहाऽसोहीय दिसकुभो ।।१॥ पडिकमणं पडिसर परिहारो धारणा णि यत्ती य । णिंदा गाहा सोही अट्टविहो अमयकु भो दु॥२।। अत्रोच्यते-- पडिकमणं पडिसरणं परिहारो धारणा णियत्ती य । गिंदा गरहा सोही अट्टविहो होइ विसकुभो ॥३०६॥ अप्पडिकमणं अप्पडिसरणं अप्परिहारो अधारणा चेव । अणियत्ती य अणिंदाऽगरहाऽसोही अमयकुभो ॥३८७॥ प्रतिक्रमरण अथवा प्रति-सरण परिहार धारण निवृत्ती । निन्दा गर्दा शुखी, ये हैं विषकुम्भ आठों हो ॥३०६॥ प्रप्रतिक्रमण अप्रति-सरण परिहार धारणा अगरे । अनिवृत्ती व प्रनिन्दा, अशुचि अमृतकुम्भ ये आठों ॥३०७॥ नामसंज- पडिकमण, पडिसरण, परिहार, धारणा, णियत्ति, य, जिंदा, गरहा, सोहि, अविह, विसकुंभ, अप्पडिकमण, अप्पडिसरण, अप्परिहार, अधारणा, च, एव, अणियत्ति, य, अणिदा, अगरहा, प्रयोग-निःशंक निर्बन्ध होनेके लिये अपनेको ज्ञानमात्र निरखना ॥३०४.३०५।। प्रश्न – इस शुद्ध प्रात्माके सेवनके प्रयाससे क्या लाभ है ? क्योंकि प्रतिक्रमण आदि से ही प्रात्मा निरपराध हो जाता है । इसका भी कारण यह है कि सापराधके प्रप्रतिक्रमणादि में अपराधको अपोहकता न होनेसे विषकुम्भपना होनेपर प्रतिक्रमणादिकके हो अपराधकी अपोहकता होनेसे अमृतकुंभपना होता है। यही व्यवहारविषयक आचारसूत्रमें भी कहा हैअप्पडि इत्यादि । अर्थ-प्रप्रतिक्रमण, अप्रतिसरण, अपरिहार, प्रधारणा, अनिवृत्ति, अनिदा, अगहों और अशुद्धि, विषकुम्भ है । प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, परिहार, धारणा निवृत्ति, निदा, गहरे और शुद्धि, अमृतकुभ है ? उत्तर-[प्रतिक्रमरणं प्रतिसरणं परिहारः धारणा निवृत्तिः निदा गर्दा] अज्ञानोका व कियारतका प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, परिहार, धारणा, निवृत्ति, निंदा, गहीं [च शुद्धिः] और शुद्धि इस तरह [अष्टविधः] पाठ प्रकारका तो [विषकुम्भः] विषकभ [भवति है; [च] और ज्ञानीका व सहजस्वभावके अनुभवीका [अप्रतिक्रमणं प्रप्रतिसरणं अपरिहारः अधारणा] सहज अतिक्रमण, अप्रतिसरण, अपरिहार, अधारणा [अनियुसिः
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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