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मोक्षाधिकार को हि नामायमपराधः ?
संसिद्धिराधसिद्ध साधियमाराधियं च एयठें। अक्मयराधो जो खलु चेया सो होइ अवराधो ॥३०॥ जो पुण गिरवराधो चेया णिस्संकियो उ सो होइ । श्राराहणाइ णिच्चं बट्टेइ ग्रहं ति जाणतो ॥३०५॥ (युग्मम्) संसिद्धि राध साधित, पाराधित सिद्ध सर्व एकार्थक । जो जीव राध अपगत, सो प्रात्मा है निरपराधी ॥३०४॥ जो जीव निरपराधी, बह निःशंक निःशल्य हो जाता।
निजको निज लखता यह, लगता मास्मानुराधनमें ॥३०॥ संसिद्धिराधसिद्ध साधितमाराधितं चैकार्थं । अपगतराधो यः खलु चेतयिता स भवत्यपराधः ।। ३०४ ॥ यः पुननिरपराधश्चेतयिता निश्शंकितस्तु स भवति । आराधनया नित्यं वर्तते, अहमिति जानन् ॥ ३०५।।
परद्रव्यपरिहारेण शुद्धस्यात्मनः सिद्धिः साधनं वा राधः, अपगतो राधो यस्य चेतयितुः सोऽपराधः । अथवा अपगतो राधो यस्य भावस्य सोऽपराधस्तेन सह यश्चेतयिता वर्तते स
नामसंग-संसिद्धिराधसिद्ध, साधिय, आराधिय, च, एयट्ट, अवगयराध, ज, स्खलु, चेया, त, अबराध, ज, पुण, मिरवराध, चैया, णिस्संकिअ, उ, त, आराहणा, णिच्चं, अम्ह, ति, जाणत । पातुसंज्ञ--
दृष्टि--१- अशुद्धनिश्चयनय (४७) । २-निर्मिसदृष्टि, निमित्तत्वनिमित्तदृष्टि (५३,
२०१)।
प्रयोग-निःशङ्क निर्बन्ध रहने के लिये परद्रव्य व परभावके ग्रहणका अपराध नहीं नहीं करके स्वभावमें उपयुक्त होना ।। ३०१.३०३ ।।
प्रश्न-यह अपराध क्या है ? उत्तर-[संसिद्धिराधसिद्ध] संसिद्धि, राध, सिद्ध [साधितं च भाराधितं] साधित और पाराधित [एकार्य] ये एकार्थ शब्द हैं। [यः खलु चेत. यिता] जो आत्मा [अपगतराधः] राधसे रहित हो [सः] वह प्रात्मा [अपराधः भवति] राधरहित याने अपराधी है [यः पुनः] और जो [चेतयिता] प्रात्मा [निरपराधः] अपराधरहित है [सः तु] वह [निःशक्तिः ] शंकारहित [भवति] है पौर सहजस्वरूप अपनेको [महं इति] मैं हूं ऐसा [जानन] जानता हुमा [आराधनया भाराधना द्वारा [नित्यं वर्तते] हमेशा बर्तता है।
तात्पर्य-प्रात्माकी दृष्टि न होना अपराध है, ऐसा अपराध करने वाला ही संसार में