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परमा को णाम भणिज वुहोणाउं सब्बे पराइए भावे । मज्झमिणति य वयणं जाणतो अप्पयं सुद्धं ॥३००॥
सब परमावोंको पर, आत्माको शुद्ध जानने वाला।
कौन बुध यह कहेगा, परभावोंको कि ये मेरे ॥३०॥ को नाम भयो बुधो ज्ञात्वा सर्वान परकीयान् भावान । ममेदमिति च वचनं जाननात्मानं शुद्ध ।। ३००॥
यो हि परात्मनोनियतस्वलक्षणविभागपातिन्या प्रजया ज्ञानी स्यात् स खल्वेकं चिन्मात्र भावमात्मीयं जानाति शेषांश्च सर्वानेव भावान परकीयान् जानाति । एवं च जानन कथं पर. भावान्ममामी इति ब्रूयात् ? १रात्मनोनिश्चयेन स्वस्वामिसंबंधस्यासंभवात् । अत: सर्वथा चिद्.. भाव एव गृहीतव्य: शेषाःसर्वे एव भावा. प्रहातव्या इति सिद्धांतः ।। सिद्धांतोऽयमुदात्तचित्तचरितर्मोक्षार्थिभिः सेध्यता शुद्धं चिन्मयमेकमेव परमं ज्योतिः देवास्म्यहं । एते ये तु समुल्लसंति
नामसंश-क, णाम, वुह, सम्ब, पराइस, भाव, अम्ह, इम, जि, य, वयण, जाणत, अप्पय, सुद्ध। । धातुसंज-भण कथने, जाण अवबोधने । प्रातिपदिक-किम्, नामन्, बुध, सर्व, परकीय, भाव, अस्मद्, इदम्, इति, च, वचन, जानत्, आत्मन्, शुद्ध । मूलधातु-भण शब्दार्थः, ज्ञा अवबोधने । पदविवरण-को क:-प्रथमा एक० । णाम नाम-प्रथमा एक० अथवा अव्यय । भणिज्ज भणेत्-लिङ विधौ अन्य पुरुष एक
दृष्टि--१-- कारककारकिभेदक सद्भूत व्यवहार (७३) । २- शुद्धनय (४६) ।
प्रयोग--प्रात्माको दर्शनशानोपयोग स्वलक्षणसे परखकर दर्शन ज्ञानमात्र अन्तस्तत्त्व का निर्विकल्प अनुभव करना ।। २६८-२६६ ।।
अब परभावकी हेयता इस गाथामें कहते हैं--[सर्वान् भावान् परकीयान] सभी : परकीय भावोंको [ज्ञात्वा] जानकर [इदं मम ये मेरे हैं [इति च वचनं] ऐसा वचन : [आत्मानं] अपने प्रात्माको [शुद्ध जानन] शुद्ध जानता हुअा [क: नाम बुधः] कोन बुद्धिमान [भरोत्] कहेगा ? ज्ञानी पंडित तो नहीं कह सकता।
तात्पर्य-शुद्ध प्रात्मतत्त्वको जानने वाला परभावोंको अपना नहीं मान सकता।
टीकार्य-जो पुरुष प्रात्मा और परके निश्चित स्वलक्षणके विभागमें पड़ने वाली । प्रज्ञाके द्वारा ज्ञानी होता है, वह पुरुष निश्चयतः एक चैतन्यमात्र अपने भावको तो अपना । जानता है और बाकीके सभी भावोंको परके जानता है । और ऐसा जानता हुप्रा ज्ञानी परके भावोंको 'ये मेरे हैं' ऐसा किस तरह कह सकता है ? क्योंकि पर और आपमें निश्चयसे स्वस्वामिपनाका सम्बन्ध असम्भव है । इस कारण सर्वथा चिद्भाव ही एक ग्रहण करना चाहिये, अवशेष सभी भाव त्यागना चाहिये, ऐसा-सिद्धान्त है । भावार्थ-जैसे लोकमें यह न्याय है कि सुबुद्धि और न्यायवान पुरुष परके धनादिकको अपना नहीं कहता, उसी तरह सम्यग्ज्ञानो