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मोक्षाधिकार चेतनाभ्युपगंतव्या ।। अद्वैतापि हि चेतना जगति चेलारूपं त्यजेत् तदला. विशेष वि. हात्सास्तित्वमेव त्यजेत् । तत्त्यागे जडता चितोऽपि भवति व्याप्यो विना व्यापकादात्मा चांतमुपति तेन नियतं दृग्जप्तिरूपास्ति चित् ।।१८६॥ एकश्चितश्चिन्मय एव भावो भावाः परे ये किल ते परेषां । ग्राह्यस्ततश्चिन्मय एवं भावो भावाः परे सर्वत एव हेयाः ।।१८। ।। २६८२६६ ॥ प्रथमा बहुवचन कृदन्त क्रिया । मादा ज्ञाता-प्रथमा एकवचन । शेष पूर्ववत् ॥ २६८-२६६|| त्यागने योग्य हैं।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रात्माको चेतनेमात्रकी क्रिया से ग्रहण करना चाहिये । अब चूकि चेतना दर्शन व ज्ञानरूप है सो द्रष्टापन व ज्ञातापनके रूपसे प्रात्माको ग्रहण करने का विधान इस गाथामें बताया है ।
तथ्यप्रकाश--(१) चेतना दर्शन और ज्ञानरूप है । (२) प्रात्माका लक्षण जैसे चेतयितापन है, ऐसे हो द्रष्टापन व ज्ञातापन स्वलक्षण ही है। (३) चेतना सामान्यविशेषात्मक है । (४) चेतनासामान्य दर्शन है। (५) चेतनाविशेष जान है । (६) आत्मा यदि दर्शन ज्ञानस्वरूप न हो तो सामान्यविशेषात्मकता न होनेसे चेतनाका अस्तित्व ही संभव नहीं है । (७) चेतनाका अभाव होनेपर, चेतन अचेतन हो जायगा अथवा चेतनका ही अभाव हो जायमा यह प्रापत्ति पाती है । (८) चोतना दर्शनज्ञानात्मिका ही होती है । (६) मैं द्रष्टा मात्माको ग्रहण करता हूं सो कैसा ? मैं देखता ही हूं। (१०) देखता हुना ही मैं देखता हूं। (११) देखते हुए के द्वारा ही देखता हूं : (१२) देखते हुएके लिये ही देखता हूं । (१३) देखते हुएसे हो देवता हूं। (१४) देखते हुएमें ही देखता हूं। (१५) देखते हुए को ही देखता हूं। (१६) इस अभेदसंदर्शनमें कारकभेद न होनेसे देखना भी कुछ नहीं, यह तो सर्वविशुद्ध दृशिमात्र भाव ही हूं मैं । (१७) मैं ज्ञाता प्रात्माको ग्रहण करता हूं सो कैसा ? मैं जानता ही हूं। (१८) जानता हुमा हो मैं जानता हूं । (१६) जानते हुएके द्वारा ही जानता हूं। (२०) जानते हुएके लिये ही जानता हूं । (२१) जानते हुएसे ही मैं जानता हूं। (२२) जानते हुएमें हो जानता हूँ। (२३) जानते हुएको ही जानता हूँ। (२४) यह अभेदसंज्ञान कारकभेद न होनेसे जानना भी कुछ नहीं, यह तो सर्वविशुद्ध ज्ञप्तिमात्र भाव हूँ मैं । (२५) दर्शनज्ञानात्मिका चेतनाके अतिरिक्त अन्य सर्व भाव हेय ही हैं।
'सिद्धान्त--(१) प्रारम्भमें प्रात्माको अभिन्न कारकोंमें देखा जाता है। (२) प्रात्मग्रहणका अभ्यास हो चुकनेपर प्रात्माका अभेदानुभव होता है ।