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________________ मोक्षाधिकार आत्मबंधौ द्विधा कृत्वा किं कर्तव्यं ? इति चेत् - जीवो बंधो य तहा छिज्जति सलक्खणेहि णियएहिं । बंधो लेएदब्बो सुद्धो अप्पा य घेत्तव्यो ॥ २६५ ॥ जीव तथा बन्धोसे, नियत लक्षणों से भेद यों करता। बन्ध वहां हट जाये, शुद्धात्मा गृहीत हो जाये ॥२६॥ जीको बन्धश्च तथा छिद्यते स्वलक्षणाम्यां नियताभ्यां । वन्धपछत्तव्यः शुद्ध आत्मा च गृहीतव्यः ।। २९५ ।। प्रात्मबंधौ हि तावनियतम्वलक्षणविज्ञानेन सर्वथैव छत्तव्यों, ततो रागादिलक्षणः समस्त एव बंधो निर्मोक्तव्यः, उपयोगलक्षण: शुद्ध प्रात्मैव गृहीतभ्यः । एतदेव किलात्मबन्धयो. द्विधाकरणमा मोननं पदभात्यागेन गाडामोपादानम ।। २६५ ।। नामसंज्ञ-जीव, बन्ध, य, तहा, सलवखण, णियअ, बन्ध, छेएदव, सुद्ध, अप्प, य, घेत्तव । घातुसंज-च्छिद छेदने गह उपादाने । प्रातिपदिक- जीव, बन्ध, च, तथा, स्वलक्षण, नियत, बन्ध, छेत्तव्य, शुद्ध, आत्मन्, गृहीतव्य । मूलधातु-छिदिर छेदने रुधादि, गिण्ह ग्रहणे । पदविवरण-जीवो जीव:-प्रथमा एकवचन । बन्धो वन्धः-प्रथमा एक०। ये च-अव्यय । तह तथा--अध्यय । छिज्जति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहु० कर्मवाच्य क्रिया । छिचते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष द्विवचन कर्मवाच्य क्रिया । सलक्खणेहितृ० बहु० । स्वलक्षणाभ्यां-तृ० द्विवचन । णियएहि-तृ० वहु० । नियताभ्यां-तृ द्विवचन । बन्धो बन्धःप्रथमा एक० । छेएदब्बो छत्तव्यः-प्रथमा एक० 1 सुद्धो शुद्धः-प्रथमा एक अप्प आत्मा-प्रथमा एकवचन । य च-अव्यय । घेत्तब्बो गृहीतव्यः-प्रथमा एकवचन कृदन्त क्रिया ।। २६५ ।। प्रसंगविवरण--अनन्तरपूर्व गायामें बताया गया था कि प्रात्मा और बच्चके नियत स्वलक्षणों को जानकर प्रज्ञा द्वारा उन्हें अलग-अलग कर दिया जाता है । अब इस गाथा में बताया है कि आत्मा और बन्धको अलग-अलग करके क्या करना चाहिये ? तथ्यप्रकाश-(१) स्वलक्षणविज्ञानसे प्रात्मा और बन्धको अलग-अलग परख लिया जाता है । (२) प्रात्मा तो मात्र उपयोगस्वरूप है । (३) बन्ध रागादि लक्षण वाला है। (४) आत्मा और बन्धको अलग-अलग करके बन्धको तो छोड़ देना चाहिये और मात्र सहज सिद्ध प्रात्माको उपयोगमें रखना चाहिये। सिद्धान्त-(१) आत्मा और बन्धका भेदविज्ञान कल्याणका प्रारम्भ है । (२) बन्ध को छोड़कर मात्र चैतन्यस्वरूप प्रात्माका अनुभव करना कल्याणलाभ है । दृष्टि - १- वैलक्षण्यनय (२०३) । २~ शून्यनय (१७३)।। प्रयोग-भेदविज्ञानसे उपयोगस्वरूप प्रात्माको और रागादि अन्धनको अलग-अलग जानकर उपयोगस्वरूप सहजात्मतस्दमें उपयोग लगाना ।। २६५ 11
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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