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मोक्षाधिकार
Sपि पूर्वे श्रात्मयोद्विधाकर व्यापार्यन्ते ॥ २१२ ॥
जह यथा य च उ तु तह तथा य च - अव्यय । बन्धे बन्धान् द्वितीया बहु० । छित्तूण छित्त्वा असमाप्तिकी किया | aणबद्धो बन्धनबद्ध:, पावइ प्राप्नोति - वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । विमोक्खं विमोक्षं द्वि० ए० । बंधे बन्धान् द्वितीया बहु० । जीवो जीवः प्रथमा एक० । संपावइ संप्राप्नोति - वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । विमोक्खं विमोक्षं द्वितीया एकवचन ॥ २९२ ॥
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होनेसे जैसे कि बेड़ी सांकल श्रादिसे बँधे हुए पुरुष के सांकलका बन्ध काटना ही छूटनेका कारण है । इस कथन से पहले कहे गये दोनों ही प्रकारके पुरुष श्रात्मा श्रीर बन्धके पृथक्-पृथक् करने में पौरुष करनेके लिये प्रेरित किये गये हैं ।
प्रसंगविवरण - अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि कर्मबन्धविषयक चिन्तनसे भी कर्ममोक्ष नहीं होता । अब इस गाथा में मोक्षहेतु क्या है यह बताया है ।
तथ्यप्रकाश ---- ( १ ) बन्धका छेदन हो मोक्षका साक्षात् हेतु हैं । (२) बन्धछेदन निविकल्प सहज चिदानन्दैकस्वभाव अन्तस्तत्त्व के आश्रय के बलसे होता है ।
सिद्धान्त - ( १ ) स्वशुद्धात्मतत्वकी भेदोपासना के बलसे बद्ध कर्म सब दूर हो जाते हैं । ( २ ) उपाधिके प्रभाव से मोक्ष होता है ।
दृष्टि-- १- शुद्ध भावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याधिकनय ( २४ब ) । २- उपाध्यभावनापेक्ष 'शुद्ध द्रव्याथिकनय (२४) ।
प्रयोग -- सहजानन्दमय निज शुद्धात्मलाभ के लिये सहजशुद्ध चैतन्यस्वरूपकी प्रभेदोपासना में मग्न होना ॥ २९२ ॥
प्रश्न -- कर्मबन्धनका हो छेदना मोक्षका कारण कहा गया सो क्या यही मोक्षका कारण है ? उत्तर--- [बंधानां च स्वभावं] बन्धोंके स्वभावको [च] और [ श्रात्मन: स्वभावं ] श्रात्मा के स्वभावको [विज्ञाय ] जानकर [ यः ] जो पुरुष [ बंधेषु ] बन्धोंके प्रति [विरज्यते ] विरक्त होता है [स] वह पुरुष [ कर्मविमोक्षशं करोति ] कर्मोंसे विमोक्षण करता है ।
तात्पर्य - अविकार सहज चित्प्रकाशमय प्रात्मस्वभावको व विकाररूप बन्धस्वभाव को जानकर जो बन्धोंसे हटता है वह कर्मरहित होता है ।
टोकार्थ- जो ही पुरुष निर्विकार चैतन्यचमत्कारमात्र प्रात्मस्वभावको और उस श्रात्मा के विकारको करनेवाले बन्धोंके स्वभावको जानकर उन बन्धोंसे विरक्त होता है वही पुरुष समस्त कर्मोंसे मुक्त होता है । इससे मारमा और बंधके पृथक-पृथक करनेके ही मोक्षके कारणपका मियम किया गया है । भावार्थ --- श्रात्मा व बंधका नृबक्करल ही गोक्षका हेतु है ।