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कस्तहि मोक्षहेतुः ? इति चेत्-
समयसार
जह बंधे छित्तराय बंधणबद्धो तु उ पावड़ विमोक्खं । तह बंधे वित्तृण य जीवो संपावड़ विमोक्खं ॥ २६२ ॥ ज्यों बन्ध काट करके बन्धनबद्ध नर मुक्तिको पाता ।
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त्यों बन्ध काट करके, आत्मा भी मोक्षको पाता ॥२६२॥
यथा वन्वामित्वा च बन्धनस्तु प्राप्नोति विमोक्षं । तथा बन्धारित्वा च जीवः संप्राप्नोति विमोक्षं । कर्मबद्धस्य बंधच्छेदो मोक्षहेतु:, हेतुत्वात् निगडादिवद्धस्य बंधच्छेदवत् । एतेन उभये
नामसंज्ञ --जह, बन्ध, य, बन्धणबद्ध, उ, विमोवख तह, बन्ध, य, जीब, विमोक्ख । धातुसंज्ञ-frage छेदने, आव प्राप्ती संप आव प्राप्तौ । प्रातिपदिक- यथा बन्ध, च बन्धनवद्ध, तु. विमोक्ष, तथा वन्ध, च, जीव, विमोक्ष मूलघातु-छिदिर धोकर प्र आलू व्याप्तो संप्र आलू व्याप्ती । मानते हैं, उनको उपदेश है कि शुभपरिणामसे मोक्ष नहीं होता ।
प्रसंग विवरण — ग्रनन्तरपूर्व गाथात्रिक में बताया था कि कर्मबन्धरचना के ज्ञानमात्रसे मोक्ष नहीं है । ग्रव इस गाथामें बताया है कि कर्मबन्धविषयक चिन्तासे भी मोक्ष नहीं है तथ्यप्रकाश - ( १ ) कर्मको प्रकृति श्रादिके बन्धका चिन्तवन करने मात्र से मोक्ष नहीं है । (२) कर्मसे रागसे कैसे छूटू इतने मात्र धर्म्यध्यान से भी मोक्ष नहीं है । ( ३ ) सहज चिदानन्दैकस्वरूप अन्तस्तस्वके ध्यानसे रहित जीवके कर्मबन्धचिन्तवनरूप सरागधर्मध्यान से पुण्यबंध तो हो लेगा, मोक्ष नहीं ।
सिद्धान्त - ( १ ) सरागधर्म्यध्यान शुभकर्मबन्धका हेतु है ।
दृष्टि - १- निमित्तदृष्टि, उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याधिकनय ( ५३, ५३ ) । प्रयोग -- कर्मबन्धविनाश चिन्तनसे गुजरकर निर्विकल्प सहजात्मसंवेदन में उपयोगको रमाना ।। २६१ ।।
प्रश्न- यदि बन्धके स्वरूपके ज्ञानसे भी मोक्ष नहीं होता और उसको चिन्ता करनेसे भी मोक्ष नहीं होता तो मोक्षका कारण क्या है ? उत्तर- [ यथा च ] जैसे [ बंधन बद्धः ] बन्धनसे बँधा पुरुष [ बंधान् छित्वा तु] बन्धको छेदकर हो [दिमोक्षं] मोक्षको [प्राप्नोति ] प्राप्त करता है [ तथा च] उसी प्रकार [ बंधान छत्वा ] कर्मके बन्धनको छेदकर [जीव: ] जीव [विमोक्षं प्राप्नोति ] मोक्षको प्राप्त करता है ।
तात्पर्य - - बन्ध के विनाशसे ही मुक्तिको प्राप्ति होती है ।
टीकार्थ- कर्मपुरुष के बन्धनको छेदन करना मोक्षका कारण है, ऐसा ही हेतुपना