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मोक्षाधिकार जह बंधे चिंतंतो बंधणबद्धो ण पावई विमोक्खं । तह बंधे चिंतंतो जोवावि गण पावई विमोक्ख ॥२६१ ज्यों बन्ध चिन्तता भी, अन्धनबद्ध नहि मुक्तिको पाता।
त्यौं बन्ध चिन्तता भी, यह जीव भि मोक्ष नहिं पाता ॥२६११ __ यथा बंधान चितयन् बंधनबद्धो न प्राप्नोति विमोक्षं । तथा बंघांश्चितयन् जीवोऽपि न प्राप्नोति विमोक्ष ।
बंधचिताप्रबंधो मोक्षहेतुरित्यन्ये तदप्यसत्, न कर्मबद्धस्य बंधचिताप्रबंधो मोक्षहेतु रहेतु. त्वात् निगडादिबद्धस्य बंधचिताप्रबंधवत् । एतेन कर्मबंधविषयचिताप्रबंधात्मकविशुद्धधर्मध्यानांधबुद्धयो बोध्यते ।। २६१ ।।
नामसंझ--जह, बंध, चितत, बधणबद्ध, ण, विमोवख, तह. बन्ध, चिनंत, जीय, वि, ण. विमाक्व । धातुसंज--प आव प्राप्तौ । प्रातिपदिक ...यथा, बन्ध, चिन्तत्. बन्धनबद्ध, न, बिमोक्ष, नथा..बन्ध, चिन्तत्, जीव, न. अग्पि, विमोक्ष । मुलधातु- आण्ड च्याप्तौ । पदविवरण--जह यथा - न तह वि ण तथा अपि न-अध्यय । बंधे दन्धान-द्वितीया बहु० । चिनंतो चिन्तन-प्रथमा एक० । बंधणबद्धो वन्धनबद्धः-प्रथमा एक० । पावइ प्राप्नोति-वतंगान लट् अन्य पुरुष एकवचन । बिमोक्खं दिमोक्ष-द्वि० एक० । जीवो जोत्र:प्रथमा एकवचन ॥२९१ ।।
प्रयोग---संसारमूल कर्मबन्धनसे छुटकारा पाने के लिये सहज ज्ञानस्वभावमात्र अन्तस्तत्त्वको निरखते रहना ।। २८८.२६० ।।
अब कहते हैं कि बन्धकी चिंता करनेसे भी बन्ध नहीं कटता--यया] जैसे कोई [बंधनबद्धः] बन्धनसे बंधा हुमा पुरुष [बंधान चितयन्द] उन बंधोंको विचारता हुमा [विमोक्षं] ___ मोक्षको [न प्राप्नोति नहीं प्राप्त कर पाता [बंधान चितयन] कर्मबन्धको चिता करता हुआ [जीवोपि] जीव भी विमोक्षं] मोक्षको न प्राप्नोति नहीं प्राप्त कर पाता 1
तात्पर्य-मात्र कर्मबन्धके चिन्तन व कर्मफलके अपायके चिन्तनरूप शुभोपयोग परि. णामसे भी मोक्ष नहीं होता ।
टीकार्थ-बंधकी चिताका प्रबन्ध मोक्षका कारण है, ऐसा कोई अन्य लोग मानते हैं वह मानना भी असत्य है । कर्मबन्धनसे बँधे हुए पुरुषके उस बंधकी चिताका प्रबन्ध कि यह बन्ध कैसे छूटेगा वह भी बन्धके अभावरूप मोक्षका कारण नहीं है; क्योंकि यह निताका प्रबंध बन्धसे छूटनेका हेतु नहीं है । जैसे कि बड़ी (सांकल) से बंधे हुए पुरुषको बन्धके स्वरूपका ज्ञानमात्र बन्धसे छूटनेका उपाय नहीं है। इस कथनसे कर्मबन्धविषयक चिताप्रबन्धस्वरूप विशुद्ध धर्मध्यानसे जिनकी बुद्धि अंधी है उनका उत्थान किया गया है । भावार्थ-कर्मबन्धकी कर्मफलके अपायकी चिन्तामें धर्मध्यानरूप शुभपरिणाम है । जो केवल शुभपरिणामसे ही मोक्ष