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मोक्षाधिकार यथा नाम कोऽपि पुरुषो बंधनके चिरकालप्रतिबद्धः । तीन मदस्वभाव कालं च विजानाति तस्य ॥२८८।। यदि नापि करोति छेदं न मुच्यते तेत बंधनवराः सन् । कालेन तु बहुकेनापि न स नरः प्राप्नोति विमोक्षं । इति कर्मबंधनानां प्रदेशस्थितिप्रकृतिमेवमनुभाग। जानत्रपि न मुच्यते मुच्यते स चव यदि शुद्धः ॥२६॥ - प्रात्मबंधयोद्विधाकन मोक्षः । बंधस्वरूपज्ञान मात्रं तद्धेतुरित्येके तदसत्, न कर्मबद्धस्य अवबोधने, कुण करणे, मुंन त्याये, प आव प्राप्तौ । प्रातिपदिक-यथा, नामन्, किम्, अपि, पुरुष, बन्धनक, चित्काल प्रतिबद्ध, तीब्रमंदस्वभाव, काल, च, तत्, यदि, न, अपि, छेद, न, तत, बन्धनवश, सत्. काल, तु, बहक, अपि, न, तत्, नर, विमोक्ष, इति, कर्मबन्धन, प्रदेशस्थितिप्रकृति, एवं, अनुभाग, जानत्, अपि, न, तत्, च, एव, शुद्ध । मूलधातु--वि शा अवबोधने, डुकृञ् करणे, मुल मोक्षणे, प्र आल व्याप्ती स्वादि। कुछ करना नहीं रहा ऐसा हैं । भावार्थ--जान बंध और पुरुषको पृथक् करके पुरुषको मोक्ष प्रास कराता हुअा अपना सम्पूर्ण स्वरूप प्रगट करके जयवंत प्रवर्त रहा है इस प्रकार जानका सर्वोत्कृष्पना प्रकट करना यही उपादेय मोक्षतत्त्वके वर्णनके प्रारम्भमें है।
अब मोक्षकी प्राप्ति कैसे होती है ? इसका समीक्षण करते हैं---[यथा नाम] जैसे [बंधनके] बंधनमें [चिरकालप्रतिबद्धः] बहुत कालका बंधा हुया [कश्चित् पुरुषः] कोई पुरुष [तस्य] उस बन्धन के [तोत्रमंदस्वभावं] तीन मंद स्वभावको [च] और [कालं] कालको [विजानाति] जानता है कि इतने कालका बंध है । तु यदि] किन्तु यदि उस बन्धनको प्राप [छदं न करोति] काटता नहीं है [तेन न मुच्यते] तो बह उस बन्धसे नहीं छूट पाता [पि] [बंधनवशः सन्] उस बन्धनके वश हुमा [स नरः] वह पुरुष [बहुकेन] बहुत [कालेन अपि] कालमें भी [विमोक्षं न प्राप्नोति] उस बन्धसे छूटने रूप मोक्षको प्राप्त नहीं करता [इति] उसी प्रकार जो पुरुष कर्मबंधनानां] कर्मके बन्धनोंके [प्रदेशस्थितिप्रकृति एवं अनुभाग] प्रदेश स्थिति प्रकृति और अनुभागको [जाननपि] जानता हुअा भी [न मुच्यते] कर्मबन्धसे नहीं छूटता च यदि स एव शुद्धः किन्तु यदि वह स्वयं रागादिकको दूर करके शुद्ध होता है [मुच्यते] तो मोक्ष पाता है।
तात्पर्य -- बन्धक स्वरूप ज्ञान मात्रसे मोक्ष नहीं होता, अतः बन्धको चर्चा करके हो अपने को मोक्षोपाय वाला नहीं मान लेना चाहिये ।।
__टोकार्थ-- प्रात्मा और बन्धका विधाकरा करना पृथक् करना मोक्ष है । यहाँ कोई कहते हैं कि बन्धका स्वरूप जानना मात्र ही मोक्षका कारण है। किन्तु वह ठीक नहीं है, कर्मसे बंधे हुए पुरुषको बंधके स्वरूपका ज्ञान मात्र ही मोक्षका कारण नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार बेड़ी आदिसे बँधे हुए पुरुषको बेड़ी आदि बन्धनके स्वरूपका जानना ही बेड़ी प्रादि कटने का कारण नहीं होता उसी तरह कर्मसे बंधे हुए पुरुषको कर्मके बन्धका स्वरूप जानना