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बन्धाधिकार
४७६ रानादिनिमित्तभावमात्मात्मनो याति यथाकांतः । तस्मिन्निमित्तं परमंग एव वस्तुस्वभावोऽयमुदेति तावत् ।।१७।। इति वस्तुस्वभाव स्वं ज्ञानो जानाति तेन सः । रागादोन्नात्मनः कुर्यान्नातो भवति कारकः ॥१७६।। ।। २७८-२७६ ॥ तृतीया बहु० । दु तु--अव्यय । सो सः-प्रथमा एकवचन । रत्तादीहि रक्तादिभिः-४० बहु० । दवेहि द्रव्य:तृ० बहु । एवं-अध्यय । णाणी ज्ञानी-प्रथमा एक० । सुद्धो शुद्धः-प्र० ए० 1 ण न--अव्यय । मय स्वयं-- अव्यय । परिणमइ परिणमते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० । रायमाईहिं रागाद्य:-तृ० बहु० । राइज्जदि रज्यते-बर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० कर्मवाच्य क्रिया। अपरोहिं अन्यः-तृ० बहु० । सो सः-प्र० एक० । रागादीहिं रागायः-४० बहु० । दोसेहिं दोषः-तृतीया बहुवचन ॥ २०८-२७६ ।। (४) लाल कागज व रागादिप्रकृतिकर्म स्वयं रागादिभावसे युक्त है सो वह स्फटिक व प्रात्मा के रागादिभावमें निमित्त होता है । (५) लाल कागज व रागादिप्रकृति विपाकका सान्निध्य पाकर स्फटिक व प्रात्मा अपने शुद्ध स्वभावसे च्युत होता हुपा हो रागादिभावसे परिणमाया जाता है। (६) योग्य उपादान का ऐसा ही स्वभाव है कि अनुकूल निमितका सानिध्य पाकर तदनुरूप विकारभावसे परिणम जाता है । (७) स्फटिककी भांति प्रात्मा परसंग बिना स्वयं नगशातिरूपसे नहीं परिणाम झामना । (6) रागादिभाबको नैमितिकताके तथ्यका ज्ञाता पुरुष अपनेको रागादिरूप नहीं करता, अतः रागादिका प्रकर्ता है।
सिद्धान्त-(१) प्रात्मा शुद्धस्वभाव होनेके कारण स्वयं अस्वभावभावरूप रागादि भावका अकर्ता है । (२) रागादिभाव नैमित्तक होनेसे स्वभावभावके आश्रयस यह हदा जाता है। । दृष्टि-१- प्रकर्तृनय (१६०)। २- उपाधिसापेक्ष प्रशुद्ध द्रव्याथिकनय (२४) ।
प्रयोग-रागादिविकारको नैमित्तिक पराश्रित अस्वभावभाव जानकर उससे उपेक्षा करके सहज ज्ञानानन्दस्वभावी अन्तस्तत्त्वमें उपयोंगको रमाना ॥ २७६.२७६ ।।
अब ज्ञानीका अकर्तृत्व इस गाथामें कहते हैं--[ज्ञानी] ज्ञानी [स्वयमेव] प्राप हो [रागद्वेषमोह] राग द्वेष मोहको [या कषायभावं] तथा कषाय भावको [आत्मनः] प्रात्माके [न च फरोति नहीं करता [तेन] इस कारण [स:] वह ज्ञानी [तेषां भावानां] उन भावोंका [कारकः न] कर्ता नहीं है।
तात्पर्य ज्ञानी परभावोंको अपना स्वभाव नही मानता, अतः वह रागादिका कलां नहीं है।
टोकार्थ-यथोक्त वस्तुस्वभावको जानता हुमा ज्ञानी अपने शुद्ध स्वभावसे नहीं छूटता, इसलिये राग-द्वेष-मोह प्रादि भावोंसे अपने पाप नहीं परिणमता और दूसरेसे भी नहीं