SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूज्यपाद-श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः समयसारः पूर्व-रंग पूज्यपाद-श्रीमदमृतचन्द्रसूरिकृता यात्मख्यातिः नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते । चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे ।।१।। अनन्तधर्मरगस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः । अनेकान्तमयी मूतिनित्यमेव प्रकाशताम् ।।२।। परपरिणतिहेतोर्मोहनाम्नानुभावादविरतमनुभाव्यच्याप्तिकल्माषितायाः । मम परमविशुद्धिः शुचिन्मात्रमूर्तेमवतु समयसारख्याख्ययवानुभूतेः ॥३॥ अध्यात्मयोगी न्यायतीर्घ पूज्य श्री गुरुवर्य श्रीमत्सहजानन्दकृत चतुर्दशाङ्गी टोका टीकागत प्रथम मंगलाचरणका अर्थ-स्वानुभवसे प्रकाशमान, चैतन्यस्वभावमय, शुद्ध सत्तास्वरूप, सर्वभावोंको एक ही समय में जानने वाले अथवा सर्व भावान्तरोंको हटाने थाले समयसारके लिये नमस्कार हो । भावार्थ-द्रव्यकर्म भावकर्म नोकर्मसे रहित केवल चित्प्रकाशमय प्रात्माको समयसार कहते हैं । समयसार कार्यसमयसार प्रभुको भी कहते हैं और समयसार अध्यात्मोपदेशके लक्ष्यभूत परमब्रह्मस्वरूपको भी कहते हैं। सो इष्ट प्रभुको व इष्ट तस्वको समयसार' शब्द कहकर नमस्कार किया गया है ।
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy