________________
बन्धाधिकार ४६५ स्वाच्चित्तं । चितो भवनमात्रत्वाद् भावः । चितः परिणमनमात्रत्वात् परिणामः ॥ सर्वाध्वसानमेवमखिलं त्याज्यं यदुक्तं जिनैः तन्मन्ये व्यवहार एव निखिलोप्यन्याश्रयस्त्याजितः । सम्यङ् निश्चयमेकमेव तदमी निष्कंपमाक्रम्य विशुद्धज्ञानघने महिम्नि त निजे बध्नंति संतोश्रुति ।। १७३ ।। ।। २७१ ।।
बुध मने, मन ज्ञाने, चितो संज्ञाने । पदविवरण- बुद्धी बुद्धिः प्रथमा एकवचन | वेबसाओ व्यवसाय - प्रथमा एक० । वि अयि च अव्यय | अभवसाणं अध्यवसानं मई मतिः विष्णागं विज्ञानं एकट्ठे एकार्थं सव्वं सर्व चित्तं भावो भावः परिणामो परिणामः प्रथमा एकवचन ।। २७९ ॥
शुद्ध निश्चय ग्रहाका उपदेश है। यह आचर्य भी किया है कि जब भगवानने सर्वविषयोंमें अवसानको छुड़ाया है तो सत्पुरुष इन ग्रध्यवसानों को छोड़कर अपने में स्थिर क्यों नहीं होते ? प्रसंगविवरण --- अनन्तरपूर्व गाथा में बताया गया था कि अध्यवसान जिनके नहीं होते वे कर्मसे लिप्त नहीं होते । श्रव इस गाथा में उन्हीं अध्यवसानोंका परिचय अनेक नामों द्वारा कराया गया है ।
:
तथ्यप्रकाश -- १ - बुद्धि, व्यवसाय, मति, विज्ञान, चित्त, भाव, संकल्प, विकल्प व परिणाम, ये सब श्रध्यवसान के अनर्थान्तर हैं । २ स्व व परका भेदविज्ञान न होनेपर होने वाले निश्चयको अध्यवसान कहते हैं । ३ श्रध्यवसान ही बोधनरूप होनेसे बुद्धि है । ४-प्रध्यवसान ही निश्चयमात्र या चेष्टामात्र होनेसे व्यवसाय कहलाता है । ५- अध्यवसान ही मननमात्र होनेसे मति कहलाता है । ६ - ग्रध्यवसान ही जाननरूप होनेसे विज्ञान कहलाता है । ७श्रध्यवसान ही चेतनेमात्रको दृष्टिसे चित्त कहलाता है । श्रध्यवसान हो जीवमें कुछ होने मात्रको दृष्टिसे भाव कहलाता है । ६- श्रध्यवसान ही जीवका कुछ परिणमन की दृष्टिसे परिराम कहलाता है | १० - श्रध्यवसान हो 'यह मेरा है' ऐसा संकल्प गर्भ होनेसे संकल्प कहलाता है । ११ - प्रध्यवसान ही हर्षविषादादिरूप होनेसे विकल्प कहलाता है । १२ - बाह्यवस्तु रागादि श्रध्यवसानका विषयभूत कारण है । १३- रागादि अध्यवसान कर्मबंध के निमित्तके निमित्तत्व का निमित्त कारण है । १४- उदयागत द्रव्यप्रत्यय नवीन कर्मबंधका निमित्त कारण है । सिद्धान्त - - ( १ ) कर्मविपाकोदय होनेपर ग्रध्यवसानभाव होता है । ( २ ) अध्यवसान भाव होनेपर कर्मबन्ध होता है ।
दृष्टि - १ - उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय (२४) । २- निमितदृष्टि ( ५.३) । प्रयोग - श्रध्यवसान भावको सर्वसंकटोंका मूल कारण जानकर अध्यवसान से अलग होकर विकार सहज ज्ञानस्वरूपमें आत्मत्वका अनुभव कर परम विश्राम पाना ।। २७१ ।।