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धन्धाधिकार एदाणि णत्थि जेसिं अज्झवसाणाणि एवमादीणि । ते असुहेण सुहेण व कम्मेण मुणी ण लिप्पंति ॥२७०॥
अध्यवसान कहे जो, वे प्रादिक अन्य सब नहीं जिनके ।
शुभ अशुभ कर्मसे के, मुनिजन नहिं लिप्त होते हैं ।।२७०॥ एतानि न संति येपामध्यवसानान्येवमादीनि । तेऽशुभेन शुभेन वा कर्मणा मुनयो न लिप्यते ।।२३०॥
एतानि किल यानि त्रिविधान्यध्यवसानानि समस्तान्यपि तानि शुभाशुभकर्मबंधनिमि. तानि, स्वयमज्ञानादिरूपत्वात् । तथाहि, यदिदं हिनस्मोत्याध्यवसानं तद्ज्ञानमयत्वेन प्रात्मनः सदहेतुकज्ञप्त्येकक्रियस्य रागद्वेषविपाकमयीनां हननादिक्रियाणां च विशेषाज्ञानेन विविक्तात्माऽज्ञानादस्ति तावदज्ञानं विविक्तात्माऽदर्शनादस्ति च मिथ्यादर्शनं, विविक्तात्मानावरणादस्ति
नामसंज्ञ-एत, ण, ज, अज्झवसाण, एवं, आदि, त, असुह. सुह, व, कम्म, मुणि, ण । धातुसंझ--- लिप लेपने, अस् सत्तायां । प्रातिपदिक --एतव, न, यत्, अध्यवसान. एवं, आदि, तत्, अशुभ, शुभ, त्र, कर्मन्, मुनि, न । मूलधातु-लिप उपमर्दे, अस सत्तायां। पदविवरण - एदाणि एतानि-प्रयमा बहु । ण से भी गुग अशुभे दाने निमित्त है. क्योंकि ये स्वयं प्रज्ञानादिरूप हैं । इसोका स्पष्टीकरण----जो यह मैं परजीवको मारता हूं इत्यादिक अध्यवसान है वह प्रज्ञानादिरूप है, क्योंकि प्रात्मा तो ज्ञानमय होनेसे सत् अहेतुक झतिक्रियामात्र ही है, किन्तु हनना घातना आदि क्रिपा हैं वे रागद्वेष के उदयरूप हैं सो इस प्रकार प्रारमा और घातने प्रादि क्रियाके भेदको न जानने से प्रात्माको भिन्न नहीं जाननेसे "मैं परजीवका घात करता हूं" प्रादि अध्यवसान मिश्याज्ञान है । इसी प्रकार भिन्न प्रात्माका श्रद्धान न होनेसे वह प्रध्यवसान मिथ्यादर्शन है इसी प्रकार भिन्न आत्माके अनाचरणसे वह अध्यक्सान मिथ्याचारित्र है और जो "मैं नारक हूं" इत्यादि अध्यवसान है वह भी ज्ञानमयपना होनेसे सत् पहेतुक एक ज्ञायकभाव प्रात्माका व कर्मोदयजनित नारकादि भावोंको अन्तर न जाननेसे विविक्त प्रात्माका अज्ञान होनेसे अश्रद्धान होनेसे मनावरण होनेसे प्रभारित है। मोर फिर जो यह धर्मद्रव्य मेरे द्वारा जाना जाता है ऐसा अध्यवसाय है वह भी अज्ञानादि रूप ही है, क्योंकि प्रात्मा तो ज्ञानमय होनेसे सत् अहेतुक एक शानमात्र हो है, किन्तु धर्मादिक ज्ञेयमय है, ऐसे ज्ञानज्ञेयका विशेष न जाननेसे विविक्त प्रात्माके अज्ञानसे "मैं धर्मको जानता हूँ" ऐसा अध्यक्सान अज्ञानरूप है, भिन्न प्रात्माके न देखनेसे याने श्रद्धान न होनेसे यह अध्यवसान मिथ्यादर्शन है, और भिन्न प्रात्माके अनाचरणसे यह अध्यवसान प्रचारित्र है । इस कारण ये सभी अध्यवसान बंध के निमित्तभूत हैं। जिनके ये अध्यवसान विद्यमान नहीं हैं वे ही मुनियोंमें प्रधान हैं याने