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समयसार ध्यवसायेनालोकाकाशमात्मानं कुर्यात् ।। विश्वाद्विभक्तोऽपि हि यत्प्रभावादात्मानमात्मा विदधाति विश्वं । मोहैककंदोध्यवसाय एष नास्तीह येषां यतयस्त एव ।।१७२।। ।। २६८-२६६ ॥ जीवाजीवी-द्वितीया बहुवचन । अलोयलोयं अलोकलोक-द्वि० ए० । सब्वे सर्वान्-द्वि० बह । करेइ करोतिवर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया। जीवो जीवः-प्रथमा एक० । अझक्साणेण अध्यवसानेन-तृतीया एक० । अप्पाणं आत्मानम्-द्वितीया एकवचन ।। २६८-२६६ ।। (8) जाने जा रहे धर्मास्तिकायके जानन विकल्पके मोहरूप अध्यवसानसे जीव स्वस्वभावस च्युत होता हुआ अपनेको धर्मास्तिकायरूप बना देता है। (१०) जाने जा रहे अधर्मास्तिकायके जाननविकल्पके मोहरूप अध्यवसानसे जीव स्वस्वभावसे व्युत होता हुना अपनेको अधर्मास्तिकायरूप बना देता है । (११) जाने जा रहे अन्य जीवके जाननविकल्पके मोहरूप अध्यवसान से जीव स्वस्वभावसे च्युत होता हुआ अपनेको अन्य जीवरूप बना देता है। (१२) जाने जा रहे पुद्गलके जानन विकल्पके मोहरूप अध्यवसानसे जीव स्वस्वभावसे च्युत होता हुअा अपनेको पुद्गलरूप बना देता है । (१३) जाने जा रहे लोकाकाशके जानन विकल्पके मोहरूप अध्यकसानसे जीव स्वस्वभावसे च्युत होता हुअा अपनेको लोकाकाशरूप बना देता है । (१४) जाने जा रहे अलोकाकाशके जानन विकल्पके मोहरूप अध्यवसानसे जीव स्वस्वभावसे च्युत होता हुआ अपनेको प्रलोकाकाशरूप बना देता है । (१५) घटाकारपरिणत ज्ञान उपचारसे घट कहा जाने की तरह धर्मास्तिकायादिका जाननरूप विकल्प भी उपचारसे धर्मास्तिकायादि कहा जाता है।
सिद्धान्त- (१) क्रियागर्भ विपच्यमान ज्ञायमान सम्बन्धी अध्यवसानसे जीव अपने को नानारूप कर लेता है।
दृष्टि--- अशुद्धनिश्चयनय, उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (४७, २४)।
प्रयोग-परभावविषयक अध्यवसानसे जीवको नाना दुर्गतियाँ जानकर उन अध्यक्षसानोंको छोड़कर ज्ञान मात्र स्वरूप में प्रात्मभावना करना ॥ २६८.२६६ ॥
प्रब बताते हैं कि अज्ञानरूप अध्यवसाय जिनके नहीं है वे मुनि कर्मसे लिप्त नहीं होते--[एतानि] ये पूर्वोक्त अध्यवसाय तथा [एयमादीनि] इस तरहके अन्य भी [अध्ययसानानि] अध्यवसाय [येषां] जिनके [न संति] नहीं हैं [ते मुनयः] वे मुनिराज [अशुभेन] अशुभ [या] अथवा [शुभेन कर्मणा] शुभकर्ममे [न लिप्यंते] लिप्त नहीं होते ।
तात्पर्य-~-अपनेको परभावरूप नहीं अनुभवने वाले मुनि शुभ व अशुभ दोनों प्रकारके कर्मसे लिप नहीं होते।
टीकार्थ-ये पूर्वोक्त जो तीन प्रकारके प्रध्यवसाय हैं अज्ञान, प्रदर्शन और प्रचारित्र,