SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ परमात्म आरती ॐ जय जय अधिकारी। जय जय अविकारी, स्वामी-जय जय अविकारी । हितकारी भयहारी, शाश्वत स्वविहारी । ॐ " ." |टेक । काम क्रोध मद लोभ न माया, समरस सुखधारी । स्वामी सम० ध्यान तुम्हारा पावन, सकल क्लेशहारी । ॐ जय""" ॥१॥ हे स्वभावमय जिन तुमि चीना, भव संतति टारी। स्वामी भव० तुब भूलत भव भटकत, सहत विपति भारी। ॐ जय ॥२॥ परसंबंध बंध दुख कारण, करत अहित भारी । स्वामी करत" परम ब्रह्मका दर्शन, चहुँगति दुखहारी। ॐ जय ||३|| ज्ञानमूर्ति हे सत्य सनातन, मुनिमन संचारी। स्वामी मुनि निर्विकल्प शिवनायक, शुचिगुण. भंडारी । ॐ जय.. ॥४॥ बसो बसो हे सहज ज्ञानधन, सहज शान्तिचारी। स्वामी सहज टलें टलें सब पातक, परबल बलधारी। ॐ जय ॥५॥ आत्म भक्तिक मेये शाश्वत शरण, सत्य तारणतरण ब्रह्म प्यारे । तेरी भवती में क्षण जाँय सारे ।। टेक ॥ ज्ञानसे ज्ञानमें ज्ञान ही हो, कल्पनाओंका इकदम विलय हो। भ्रान्तिका नाश हो, शान्तिका वास हो, ब्रह्म प्यारे। तेरी' ॥१॥ सर्व गतियोंमें रह गतिसे न्यारे, सर्व भावों में रह उनसे न्यारे। सर्वगत आत्मगत, रत न नाहीं विरत, ब्रह्म प्यारे । तेरी" ॥२॥ सिद्धि जिनने भि अबतक है पाई, तेरा आथय ही उसमें सहाई । मेरे संकटहरण, ज्ञान दर्शन चरण, ब्रह्म प्यारे । तेरी ॥३॥ देह कर्मादि सब जगसे न्यारे, गण व पर्ययके भेदोंसे पारे। नित्य अन्तः अचल, गुप्त ज्ञायक अमल, ब्रह्म प्यारे। तेरी ||४|| आपका आप ही प्रेय तू है, सर्व श्रेयोंमें नित श्रेय तू है । सहजानन्दी प्रभो, अन्तर्यामी विभो, ब्रह्म प्यारे । तेरी " ॥५॥ ( ५५ )
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy