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समयसार उम्मग्गं गच्छंत सगंपि मग्गे ठवेदि जो चेदा। सो ठिदिकरणाजुत्तो सम्मादिछी मुणेयब्बो ॥२३४॥ उन्मार्ग में पतित निज, परको जो मार्गमें लगाता है ।
वह मार्गस्थापक है, सम्यग्दृष्टो उसे जानो ।।२३४॥ उन्मार्ग गर्छत स्वकमपि मार्ग स्थापयति यश्चेतयिता। स स्थितिकरणयुक्तः सम्यग्दृष्टिमन्तव्यः ।।२३४॥
यतो हि सम्यग्दृष्टिः टंकोत्कोएँ कज्ञायकभावमयत्वेन मार्गात्प्रच्युतस्यात्मनो मार्गे एवं स्थितिकरणात स्थितिकारी ततोऽस्य मागच्यवनकृतो नास्ति बंधः कि तु निर्जरैव ॥२३४।।
नामसंज्ञ-उम्मग, गच्छंत, सग, पि, मग्ग, ज, चेदा, त, ििदकरणाजुत्त, सम्मादिट्टि, मुणेयव्य । धातुसंज्ञ-गच्छ गती, ठ्य स्थापनायां । प्रातिपदिक-- उन्मार्ग, गच्छत्, स्थक, अपि, मार्ग, यत्, चेतायत, तन, स्थितिकरणयुक्त, सम्यग्दृष्टि, मंतब्य । मूलधातु—गम्ल गती, प्ठा गतिनिवृतो णिजंत । पदविवरणउम्मगं उन्मार्ग-द्वितीया एक० । गच्छत-द्वि० ए० । संगं स्वकं-द्वि० ए० । पि अपि-अध्यय । मग्गे मार्गसप्तमी एक० । वेदि स्थापयति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन । जो य:-प्रथमा एक० । चेदा चेतग्रिना-प्रथमा एक । मो स:-प्रथमा एक० । ठिदिकरणाजुत्तो स्थितिकरणयुक्तः-प्रथमा एक० । सम्मादिट्ठी सम्बष्टि:-प्र० ए० । मुणेयन्वो मन्तव्यः-प्रथमा एकवचन कृदन्त क्रिया ॥ २३४ ।। जाते हैं इसलिये निर्जरा ही है ।
प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें सम्यग्दृष्टिके उपगहन अंगका वर्णन किया गया था। अब क्रमप्राप्त स्थितिकरण अंगका इस गाथामें वर्णन किया गया है।
तथ्यप्रकाश-१-कर्मविपाकवश मिथ्यात्वरागादिरूप उन्मार्गमें जानेके अवसरमें स्वयं को सभ्यग्दृष्टि अध्यात्मयोग पौरुषसे रत्नत्रयरूप सन्मार्गमें स्थापित करता है। २-उन्मार्गमें जाते हुए परको सम्यग्दृष्टि सद्वचनादिके सहयोगसे सन्मार्गमें स्थापित करता है। ३--मार्गच्यवन कृत बन्ध सम्यग्दृष्टिके नहीं है ।
सिद्धान्त-१--ज्ञानमयताके कारण ज्ञानी अपनेको शिवमार्गमें स्थित रखता है। दृष्टि -१-कारककारकिभेदक सद्भूत व्यवहारनय (७३) ।
प्रयोग -अपनेको ज्ञानमात्र निरखते हुए अपने रलत्रयमार्गमें स्थित रहने का उपयोग रखना ।।२३४॥
प्रागे वात्सल्य गुरणको गाथा कहते हैं--[यः] जो जीव [मोक्षमार्गे] मोक्षमार्गमें स्थित [त्रयाणां साधूनां] प्राचार्य उपाध्याय साधुवोंका अथवा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीनों सम्यग् भावोंका [वत्सलत्वं] वात्सल्य [करोति] करता है [सः] वह [वत्सलभावयुतः] वत्सलभावसहित [सम्यग्दृष्टिः सम्यग्दृष्टि है [ज्ञातव्यः] ऐसा जानना चाहिये ।