________________
गाथा सं०
विषय
प्रारम्भ पृष्ठ संग १९८ से १९६ सम्यग्दृष्टि सामान्यरूपसे तथा विशेषरूपसे स्वपरको रवभाव रूप व अस्वभावरूप उन उनके स्वलक्षणों से जानता है ।।
३५४ २०० सम्यग्दष्टि ज्ञान-ओराग्य संपन्न होने से कर्मविपाकप्रभव भावोंको छोड़ देता है
३५७ २०१ से २०२ रामी जीव सम्यग्दृष्टि क्यो नहीं होला इसका सयुक्तिक समाधान
२०३ अपने एक शाश्वत अविकार शायक पदमें स्थिर होमेका उपदेश २०४ आत्माके एक ज्ञायक स्वभाव पदका आलम्बन ही मोक्षका कारण है। आत्माका परमार्थ
पद अभेद है ज्ञान में जो भेद हैं वे कर्मके क्षयोपशम के निमिससे हैं । २०५ ज्ञानस्वभायमय पद ज्ञानसे ही प्राप्त होता है । ज्ञानगुणसे रहित लोक ज्ञानस्वरूप
पदको प्राप्त नहीं कर सकते। २. जापान में जी रमा करने व तृप्त रहने में इत्तम सुखका लाभ
२०७ ज्ञानी परद्रव्यको क्यों नहीं ग्रहण करता है? २०५ से २०६ परिग्रह के त्यागका परमार्थ विधान २१० से २१३ ज्ञानीके अज्ञानमय भाव रुप इच्छाके नहीं होने के कारण धर्म, अधर्म, आहार, पानका परिग्रह नहीं है।
३७४ २१४ ज्ञानी सर्वच निरासम्ब निश्चित ज्ञायक भावरूप है इसका सकारण समर्थन २१५ से २१७ उत्पन्न उदयका भोग उपभोग ज्ञानीके वियोगबुद्धिसे होता है । अनागत उदय की ज्ञानी
बाञ्छा नहीं करता, वह जानता है कि वेदकदेवभाव समय-समयपर नष्ट हो जाते हैं। एक वस्तुविषयक वेदक वेध भाष युगपत् हो ही नहीं सकते, इसलिए उसके बंध और उपभोगके निमित्त भूत संसार-देह-सम्बन्धी राग नहीं होता।
३५० २१८ से २१६ जानी कोंके बीच पड़ा हुआ भी कर्मोंसे लिप्त नहीं होता, जैसेकि सुत्रर्ण कीचड़ में
पड़ा हुआ भी कीचड़ में लिप्त नहीं होता, अज्ञानी कर्भरजसे लिप्त होता है, जैसे
कीचड़में पड़ा हुआ लोहा कीचड़से लिप्त हो जाता है।। २२० से २२३ ज्ञान स्वभावको छोड़कर अमानसे परिणत हुआ जीव अज्ञानी होता है इसका
दृष्टान्तपूर्वक समर्थन २२४ से २२७ कर्मफल की इच्छा करने वाला कर्मसे लिप्त होता है, बिना बांछा कर्म करे तो
लिप्त नहीं होता इसका दृष्टांतपूर्णक स्पष्टीकरण २२८ सम्यग्दृष्टि आत्मा स्वरूपमें निःशंक होने के कारण इहलोक, परलोक, वेदना,
अरमा, अगुप्ति, मरण और आकस्मिक इस प्रकार सातों मोसे विमुक्त रहता है २२६ से २३६ निःशंफित, निःकाशित, निविचिकित्सा, अमूडदृष्टि, उपगृहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना-सम्यग्दर्शन के इन आठ अंगोंका निश्चयनयकी प्रधानता से दिग्दर्शन
-बंध अधिकार २३७ से २४१ उपयोगमें रागादिकका करना ही बंधवा कारण है इसका सदष्टान्त कथन २४२ से २४६ सम्यग्दृष्टि उपयोग में रागादिक नहीं करता और न रागारिक का स्वामी होता है ।
इस कारण सम्यग्दृष्टि के बंध नहीं होता, इसका सदृष्टान्त धन २४७ ज्ञानी और अज्ञानीका परिचय २४८ से २५८ किसी को जीवित करनका, मारनेका, दुःखी-सुखो करने का अध्यक्सान प्रगट
अशान है, मिध्वाभाव है, इसका सयुक्तिक विवरण
३६७
Y08
४२७
४३२