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निर्जराधिकार
३८५ एमादिए दु विविहे सव्वे भावे य णिच्छदे गाणी । जाणगभावो णियदो णीरालंबो दु सव्वस्थ ॥२१४॥
इत्यादिक नानाविध, सब भावोंको न चाहता ज्ञानी ।
किन्सु नियत है ज्ञायक, सब प्रों में निरालम्बी ॥२१४॥ एवमादिकांस्तु विविधान् सर्वान भावांश्च नेच्छति ज्ञानी । ज्ञायकभावो नियतः निरालंबस्तु सर्वत्र ॥२१४॥
एवमादयोऽन्येऽपि बहुप्रकारा; परद्रव्यस्य ये स्वभावास्तान सर्वानव नेच्छति ज्ञानी 1 तेन जानिनः सर्वेषामपि परद्रव्यभावानां परिग्रहो नास्ति इति सिद्धं ज्ञानिनोऽत्यंतनिष्परिग्रहत्वं ।
नामसंज्ञ- एवं, आदिम, दु, विविह, सव्व, भाव, य, ण, इच्छदे, णाणि, जाणगभाव, गिय द, गीरासंब, दु, सव्वत्थ । धातुसंश–इच्छ इच्छायां, जाणं अवोधने । प्रातिपदिक-एवं, आदिक, तु, विविध,
दृष्टि-- शुमभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याधिकनय (२४ ब)। २- परद्रव्यादिग्राहक द्रव्या__ थिकनय (58), स्वयादिग्राहक द्रव्याथिकनय (२८)।
प्रयोग-पुण्य, पाप, प्रशमेच्छा, पानेच्छा आदि सर्व विभावोंका रंच भी राग न कर अविकार ज्ञानस्वभावमें रमकर संतुष्ट होनेका पौरुष करना ।। २१३ ।।
अब कहते हैं कि ज्ञानी अन्य भी सर्चपरभावोंको नहीं चाहता है-[एवमादिकान तु] इस प्रकार याने पूर्वोक्त प्रकार इत्यादिक [विविधान्] नाना प्रकारके [सर्वान् भावान् ] समस्त भावोंको [ज्ञानो] ज्ञानी [न इच्छति] नहीं चाहता है । [तु] क्योंकि ज्ञानी [नियतः] नियत [शायकभायः] ज्ञायकभावस्वरूप है, अतः [सर्वत्र] सबमें [निरालम्बः] निरालम्ब है ।
तात्पर्य - ज्ञानी वस्तुस्वातंत्र्यके परिचयके बलसे किसी भी परद्रव्यको नहीं चाहता । वह तो सर्व परपदार्थों के विकल्पसे भी हटकर ज्ञातामात्र रहता है ।
टोकार्थ-ऐसे पूर्वोक्त भावोंको प्रादि लेकर अन्य भी बहुत प्रकारके जो परद्रव्यके स्थभाव हैं उनको सबको ही ज्ञानी नहीं चाहता है इस कारण ज्ञानीके समस्त ही परद्रव्यभावोंका परिग्रह नहीं है। इस प्रकार ज्ञानियोंका अत्यन्त निष्परिग्रहपना सिद्ध हुया । अब इस प्रकार यह समस्त परभावके परिग्रहसे शून्यपना होनेसे उगल दिया है समस्त प्रज्ञान जिसने ऐसा यह समस्त वस्तुबोंमें अत्यन्त निरालम्ब होकर प्रतिनियत टंकोल्कीर्ण एक ज्ञायक भाव होता हुअा अपने प्रात्माको साक्षात् विज्ञानघन अनुभवता है । भावार्थ-ज्ञानी समस्त परभावोंको औपाधिक व हेय जान लेनेके कारण किसीको भी प्राम करनेकी चाह नहीं करता, मात्र प्राक् पदवीमें उदयागत कर्ममलको अनासक्त होता हुआ भोगता है।
अब इसी अर्थको इस कलशमें कहते हैं--"पूर्वबद्ध" इत्यादि । अर्थ-पूर्वबद्ध निज