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________________ समयसाः अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणी य णिच्छदे पाणं । अपरिग्गहो दु पाणस्स जाणगो तेण सो होदि ॥२१३॥ निर्वाञ्छक अपरिग्रह, कहा है ज्ञानी न चाहता पान । इससे पानपरिग्रह विरहित ज्ञायक पुरुष होता ॥२१३॥ अपरिग्रहों अनिच्छो भणितो ज्ञानी च नेच्छनि पानं । अपरिग्रहस्तु पानस्य ज्ञायकरतेन स भवति ॥२१३|| इच्छा परिग्रहः । तस्य परिग्र हो नास्ति यस्येच्छा नास्ति । इच्छा त्वज्ञानमयो भावः । अज्ञानमयो भावस्तु ज्ञानिनो नास्ति । ज्ञानिनो ज्ञानमय एच भावोऽस्ति । ततो ज्ञान्यज्ञानमयस्य भावस्य इच्छाया प्रभावात् पानं नेच्छति । तेन ज्ञानिनः पानपरिग्रहो नास्ति । ज्ञानमयस्यकस्य ज्ञायकभावस्य भावात् केवलं पानकस्य ज्ञायक एवायं स्यात् ।। २१३ ।। नामसंज्ञ-पाण, पाण, शेष पूर्वगाथावत् । धातुसंज्ञ-पा पाने, शेष पूर्वगाथावत् । प्रातिपदिकपान, पान, शेष पूर्वगाथावत् । मूलधातु-पा पाने शेष पूर्वगाथावत् । पदविवरणह-पाणं पानं-द्वितीया एक० ! पाणस्स पानस्य-षष्ठी एकवचन । शेष पूर्वगाथावत् ।।२१३।। अज्ञानमयभाव है, अज्ञानमयभाव ज्ञानीके नहीं होता, ज्ञानीके ज्ञानमय हो भाव होता है । इस कारण ज्ञानी अज्ञानमय भावरूप इच्छाका अभाव होनेसे पानको नहीं चाहता, अतः ज्ञानीके पानपरिग्रह नहीं है । यह ज्ञानी तो मात्र ज्ञानमय एक ज्ञायक भावके सद्धावसे केवल ज्ञायक हो है । भावार्थ-ज्ञानीके पान आदि किसी भी विकारकी कामना न होनेसे वह पान आदि सर्व परिग्रहसे रहित है। प्रसंगविवरण--ज्ञानीके अपरिग्रहत्व के स्थलमें पुण्य, पाप, प्रशनका अपरिग्रहत्व बत. लाकर अब पानका अपरिग्रहत्व इस गाथामें बताया है । तथ्यप्रकाश--(१) असातावेदनीयके तीव्रतर तीन मंद मंदतर विपाकोदयके निमित्तसे तृषावेदना होती है। (२) वोन्ति राय कर्मके उदयसे प्रशक्तिके कारण वेदना असह्य हो जाती है । (३) चारित्रमोहके उदयसे जल आदि ग्रहण करनेको इच्छा होती है । (४) क्षुधा, असाता व पानेच्छा प्रादि विकारोंको भोपाधिक अस्वभावभाव जाननेसे ज्ञानीको इनको इच्छा नहीं है । (५) अज्ञानमय इच्छाके अभावसे ज्ञानीके इन किन्हीं भी विकारोंका परिग्रह नहीं है वह तो मात्र जायक है । सिद्धान्त--(१) ज्ञानीके बहिस्तत्वके प्रति इच्छा, मूर्छा नहीं है। (२) ज्ञानी दर्पणमें बिम्बकी तरह उपयोगमें प्रतिफलित कमरसका ग्रहण करने वाला नहीं है, वह तो ज्ञानमात्र है।
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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