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सिरविकार
३६५ यस्तुवृत्ति विदन् । प्रात्मात्मानुभवानुभावविवशो भ्रश्यद्विशेषोदयं सामान्यं कलयत्किलंष सकलं ज्ञानं नयत्येकतां ॥१४०।। ।। २०३ ।। धानि-वि० बहु० । मोत्तूण मुक्त्वा-असमाप्तिकी क्रिया। गिव्ह गृहाण-आज्ञार्थे लोट् मध्यम पुरुष एक० । तह तथा-अव्यय । णियदं नियत-द्वि० एक० । विरं स्थिरं-द्वि० एक। एक-द्वि० ए० । इम-द्वि० ए० । भाव-द्वि० ए० । उवलन्भंतं उपलभ्यमानं-दि० एक ० १ सहावेण स्वभावेन-तृतीया एकवचन ।। २०३ ।। घारी ज्ञानमात्रभाव पात्मामें अनवरत प्रात्ममय होनेसे प्रात्माका पदभूत है । ६- अनुभवमें एक ज्ञानमात्र भाव होनेपर रंच भी कोई विपत्ति नहीं है। १०- एक ज्ञानमात्रभावके समक्ष अन्य परिणमन सब अपद व विपन्न प्रतिभासित होते हैं।
सिद्धान्त-१- प्रात्मा अखण्ड शाश्वत ज्ञानमात्र है। २- प्रात्मामें उठे विभाव प्रात्माके पद नहीं हैं।
दृष्टि-~१- प्रखण्ड परमशुद्धनिश्चयनय (४४) । २- प्रतिषेधक शुद्धनय (४६.प्र)।
प्रयोग- सर्व विपदावोंको सदाके लिये नष्ट कर शाश्वत प्रानन्दमय होने के लिये अपने प्रापके शाश्वत अविकार ज्ञानमात्र स्वभावको ही उपयोगमें ग्रहण करने व ग्रहण किये रहनेका पौरुष करना ।। २०३ ॥
एक स्थायी सहजज्ञानभाव क्या है ?--- [प्राभिनिबोधिकधुताधिमनःपर्ययकेवलं च मतिज्ञान श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान [तत् एकमेव पदं भवति] वह सब एक ज्ञान ही पद है [एषः सः परमार्थः] यह वह परमार्थ है [यं लब्ध्वा] जिसको पाकर मात्मा [निवृति] मोक्षपदको [याति] प्राप्त होता है ।
तात्पर्य-सहज ज्ञानस्वभावके प्राश्रयसे ही मुक्तिका लाभ होता है ।
टोकार्थ-वास्तबमें प्रात्मा परम पदार्थ है और वह ज्ञान ही है, वह प्रात्मा एक ही पदार्थ है इस कारण ज्ञान भी एक पदको ही प्राप्त है, और जो यह ज्ञाननामक एक पद है वह परमार्थस्वरूप साक्षात् मोक्षका उपाय है । मतिज्ञानादिक जो ज्ञानके भेद हैं वे इस ज्ञाननामक एक पदको भेदरूप नहीं करते, किन्तु वे मतिज्ञानादिक भेद भी एक ज्ञाननामक पदका ही अभिनन्दन करते हैं । यही कहते हैं--जैसे इस लोकमें घनपटलोंसे, बादलोंसे पाच्छादित तथा उन बादलोंके दूर होनेके अनुसार प्रगटपना धारण करने वाले सूर्यके जो प्रकाशके होनाधिक भेद हैं वे उसके प्रकाशरूप सामान्य स्वभावको नहीं भेदते, उसी प्रकार कर्मसमूहोंके उदयसे आच्छादित तथा उस कर्मके विघटनके अनुसार प्रगटपनेको प्राप्त हुए ज्ञान के हीनाधिक भेद प्रात्माके सामान्य ज्ञानस्वभावको नहीं भेदते, बल्कि वे भेद अात्माके ज्ञानसामान्यका अभिनंदन