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________________ समयसार सम्यग्दृष्टिविशेषेण तु स्वपरावेवं तावज्जानाति पुग्गलकम्मं रागो तस्स विवागोदनो हबदि एसो। ण दु एस मज्भ भावो जाणगभावो हु अहमिक्को ॥१६॥ रागप्रकृति पुद्गल है, राग विभाव है उदयफल उसका । वह भाव नहीं मेरा, मैं तो है एक ज्ञायक सत् ॥१६॥ पुद्गलकमं रागस्तस्य विपाकोदयो भवति एषः । मल्वेष मम भावः ज्ञायकभावः खल्बहमेकः ।। १९६॥ अस्ति किल रागो नाम पुद्गलकम, तदुदयविपाकप्रभवोयं रागरूपो भावः, न पुनर्मम स्वभावः । एष टंकोत्कीरण कज्ञायकभावस्वभावोहं । एवमेव च रागपदपरिवर्तनेन द्वेषमोहक्रोधमानमायालोभकर्मनोकर्ममनोवचनकायश्रोत्रचक्षुरिगरसनस्पर्शनसूत्राणि षोडश व्याख्येयानि, अनया दिशा अन्यान्यप्युह्यानि । एवं च सम्यग्दृष्टिः स्वं जानन राग मुंचंश्च नियमाज्ज्ञानवैराग्यसंपन्नो भवति ॥१९॥ नामसंज--पुम्गलकम्म, राग, त, विधामोदय, एत, ण, दु, एत, अम्ह, भाव, जाणगभाव, दु, अम्ह, इक्क । धातुसंज्ञ-हव सत्तायां, रज्ज रागे । प्रातिपदिक-पुद्गलकर्मनू, राग, लत्, विपाकोदय, एतत्, न, तु, एतत्, अस्मद, भाव, ज्ञायकभाव, तु, अस्मद्, एक । मूलधातु-वि-हुपचष पाके, भू सत्तायां । पदविवरण-पुग्गलकामं पुद्गलकर्म-प्रथमा एकवचन । यो सम-प्रथम) एका । सस्त तस्य षष्ठी एक० । हदि भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया । एसो एषः-प्र० ए० । ण न-अव्यय । दु तु-अव्यय । एस एप:-प्र० ए० । मझ मम-षष्ठी एक० । भावो भावः-प्र० ए० । जाणगभावो ज्ञायकभावः-प्र० ए०। हु खलु-अव्यय । अहं-प्रथमा एक० । इक्को एक:-प्रथमा एकवचन ॥ १६ ॥ तो एक सहज ज्ञायकभाव स्वभाव है, क्योंकि यह प्रात्माका निरपेक्ष निरुपाधि शाश्वत सहज भाव है । ५-ज्ञानी अपनेको ज्ञायकस्वभावमात्र जानता हुप्रा रागादि परभावको छोड़ता हुआ ज्ञानवृत्तिरूप परिणमता रहता है । ६- ज्ञानी अात्मा ज्ञानमात्र स्वको जाननेसे ज्ञान सम्पन्न है व रागादि परभावको छोड़नेसे वैराग्यसंपन्न है । सिद्धान्त-१-रागप्रकृतिके उदयका निमित्त पाकर जीवमें रागभाव होता है । २-जीवका स्वभाव शाश्वत ज्ञायकभाव है। दृष्टि-१-उपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्याथिकन य (२४)। २-अखण्ड परमशुद्ध निश्चय. नय (४४)। प्रयोग–अध्र व, प्रशरण, दुःखरूप, दुःखफल वाले, भिन्न, प्रसार परभावोंसे मत्यन्त उपेक्षा करके निज सहज एक झायकस्वभावमय अन्तस्तस्वकी उपासना करना ।।१६६॥ अब औपाधिक भावोंकी परभावता जाननेका फल बताते हैं--[एवं इस तरह
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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