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समयसार नोकमहेतुः । नोकर्म संसारहेतुः, इति ततो नित्यमेवायमात्मा, प्रात्मकर्मणोरेकत्वाध्यासेन | मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगमयमात्मानमध्यवस्यति । ततो रागद्वेषमोहरूपमास्रवभावं भावयति । ततः कर्म आस्रवति, ततो नोक्रम भवति, ततः संसारः प्रभवति । यदा तु प्रात्मकर्मणोर्मेंदविज्ञानेन शुद्धं चतन्यचमत्कारमात्रमात्मानं उपलभते तदा मिश्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानां अध्यबसानानां प्रास्रवभावहेतूनां भवत्यभावः। तदभावे रागद्वेषमोहरूपासवभावस्य भवत्यभावः, तदभावे भवति कर्माभावः, तदभावे नोकर्माभावः, तदभावे च भवति संसाराभावः । णोकम्म, पि, गिरोह, गोकम्मणिरोह, य, संसारविरोहण । धातुसंज्ञ-भण कथने, जा प्रादुर्भाव, हो । सत्तायां । प्रातिपदिक - तत्. हेतु, भणित, अध्यवसान, सर्वदर्शिन्, मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरतभाव, च, योग, च, हेत्वभाव, नियम, ज्ञानिन्, आस्रवनिरोध, आस्रवभाव, विना, कर्मन्, अपि, निरोध, कर्मन्, अभाव, योग ये चार [अध्ययसानानि] अध्यवसान [सर्वदशिभिः] सर्वज्ञदेवोंने [भरिणताः] कहे है सो [ज्ञानिनः] ज्ञानीके [हेत्यभावे] इन हेतुघोंका प्रभाव होनेसे [नियमात्] नियमसे [आस्रबनिरोधः] अास्रवका निरोध [जायते] होता है [च] और [प्रास्त्रवभावेन विना] पासवभाव । के बिना [कर्मणः अपि] कर्मका भी [निरोधः निरोध जायते होता है [च और [कर्मणः प्रभावेन] कर्मके प्रभावसे [नोकर्मणां अपि] नोकर्मों का भी [निरोध] निरोध [जायते होता है [५] तथा [नोकर्मनिरोधेन ] नोकर्मके निरोध होनेसे [संसारनिरोधनं ] संसारका निरोध [भति] होता है।
तात्पर्य-ज्ञानीके अध्यवसान नहीं होनेसे प्रास्त्रव कर्म व नोकर्मके निरोधपूर्वक संसार का निरोध हो जाता है।
___टोकार्थ--प्रात्मा और कर्मके एकत्यके अध्यासमूलक मिथ्यात्व, अज्ञान, प्रविरति, योगस्वरूप अध्यवसान मोही जीवके विद्यमान हैं ही, वे अध्यवसान राग-द्वेष-मोहस्वरूप प्रानव भावके कारणभूत हैं, प्रास्त्रवभाव कर्मका कारण है, कर्म नोकर्मका कारण है और नोकर्म संसार का कारण है। इस कारण आत्मा नित्य ही आत्मा और कर्मके एकत्वके अध्याससे प्रात्माको मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगमय मानता है । उस अध्याससे राग-द्वेष-मोहरूप प्रास्त्रव भावों को भाता है उससे कर्मका प्रास्रव होता है, कर्मसे नोकर्म होता है और नोकर्मसे संसार प्रगट होता है। परंतु जिस समय यह प्रात्मा, पारमा और कर्मके भेदज्ञानसे शुद्ध चैतन्य चमत्कार मात्र प्रात्माको अपने में पाता है उस समय मिथ्यात्व अज्ञान प्रविरति योगस्वरूप, प्रास्रवभावों के कारणभूत अध्यवसानोंका इसके प्रभाव होता है, मिथ्यात्व प्रादिका प्रभाव होनेसे राग-द्वेष मोहरूप पासत्र भावका अभाव होता है, राग-द्वेष-मोहका प्रभाव होनेसे कर्मका प्रभाव होता