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________________ " 2 P १३६. एकजातिकायें अन्यजातिकारणोपचारक व्यवहार (जैसे घटाकार परिणत ज्ञान घट है आदि कथन ) १४०. एकजात्यरूपे अन्यजातिपूर्णोपचारक व्यवहार (जैसे राजघरानों में यह नौकर सर्वव्यापक है आदि कथन ) १४१. स्वजात्यल्पे स्वजातिपूर्णोपचारक व्यवहार (जैसे सम्यक् मतिज्ञान केवल ज्ञान है आदि कथन } १४२. एकजात्याधारे अन्यजात्याधेयोपचारक व्यवहार (जैसे जिस पर बैठकर विद्वान प्रवचन करे तो कहना इस मंचने बड़े प्रवचन किये) कर बुलाना ) १४३. स्वजात्याबारे स्वजात्याधेयोपचारक व्यवहार (इस गुरुके उदर में हजारों शिष्य पड़े हैं आदि कथन ) १४४. एकजात्याधेये अन्यजात्याधारोपचारक व्यवहार इसे डाल १४५. स्वजात्याधेये स्वजात्याधारोपचारक व्यवहार ( जैसे मां को गोदनें बैठे हुए बालकका नाम लेकर मां को पुकारना ) १४६. तद्धति तदुपचारक व्यवहार (जैसे लाठीवाले पुरुषको लाठी कहकर पुकारता ) १४७. अती सामीप्ये तस्योपचारक व्यवहार (जैसे चश्म (अंतिम) भव से पूर्व के मनुष्यभवको भी चरम कहना ) १४८. भाधिनि भूतोपचारक व्यवहार (जैसे दवें गुणस्थान में औपशमिक या क्षायिक भाव कहना) १४९. तत्सच्ाकारणे तपसारक व्यवहार (जैसे कर्मोदयअनित विकार इस जीवके लिये शल्य हैं आदि कथन ) १५० सदशे एकरवोपचारक व्यवहार (जैसे गेहूं दानोंके ढेरको गेहूं एक वचन कहकर कहना ) १५१. आश्रये आधी उपचारक व्यवहार (जैसे राजा प्रजाके गुण दोषोंको उत्पन्न करता है आदि कथन ) अवाप्तिनय १५२. व्यय (जैसे आत्मतत्त्व निमा है आदि परिचय ) १५३. पर्यायनय (जैसे आत्माको दर्शन ज्ञान आदि मात्र देखना आदि परिचय ) १५४. अस्तित्वनय (जैसे अपने व्यक्षेत्र कालभावसे आत्माका अस्तित्व जानना) १५५. मास्तित्वनय (जैसे परके द्रव्यक्षेत्र कालभावसे आत्माका नास्तित्व जानना ) १५६. मस्तिस्वनास्तिस्वनय (जैसे स्थावरद्वव्यक्षेत्र कालभावसे आत्माको अस्तित्वनास्तित्ववान् जानना आदि ) १५७. अवक्तव्यनय (जैसे युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्र कालभावसे कहा जाना अशक्य होने से आत्मा वक्त है ऐसा जानना ) १४८. अस्तित्वाबक्तव्यमय (जैसे स्वद्रव्यक्षेत्र कालभावसे तथा युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्र कालभाव से आत्मा अस्तिस्वचदवक्तव्य है ऐसा जानना आदि) १५६. नास्तित्वक्तव्यय (जैसे परद्रव्यक्षेत्रकालभाव से तथा युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्र कालभाव से आत्मा नास्तित्ववददरम्य है आदि परिचय) १६०. अस्तित्वनास्तित्वावक्तव्यमय (जैसे स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावसे, परद्रव्यक्षेत्र कालभावसे व युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावसे आत्मा अस्तित्व नास्तित्ववदवतथ्य है आदि परिचय) १६१. विकल्पनय (जैसे कोई एक वही जीव मनुष्य है पशु है आदि परिचय ) १६२. अधिकल्पनय (जैसे एक आत्मामात्र का प्रतिभास) १६२. नामदय (जैसे ज्ञायक नाम आत्माका रखा है आदि नामसे परिचय ) १६४. स्थापनानय (जैसे देहरूप पुद्गलस्कंधों में आत्माका प्रतिष्ठापन ) १६. व्यनय (जैसे अतीत अनागत पर्यायों में आत्माका बोधन) १६६. भावनय (जैसे वर्तमान पर्याय आत्माका बोधन) १६७. सामान्यनय (जैसे गुण पर्यायों में व्यापक सामान्य का बोधन) १६८. विशेषनय (जैसे सदा न रहनेवाले नरनारकादि जीव का बोधन ) १६६. निष्यनय (जैसे नाना प्राणिभेदोंको धारण करनेवाले एक आत्मा का बोधन) १७०. अनियनय (जैसे अनवस्थायी मनजादिवेशी आत्माका बोधन) ( ४३
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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