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________________ १०६A. स्वजातिये स्वजासिद्रक्ष्योपचारक असद्भुतव्यवहार (जैसे शरीर मिट्टी है आदि कथन) १०७. एकजातिपर्याय अन्यजातिपर्यायोपचारक असद्भुत श्यवहार (जैसे अन्न ही प्राण है आदि कथन) १०८. स्वजातिपय स्वजातिपर्यायोपचारक असदभूत व्यवहार (जैसे दर्पणमें हुए प्रतिबिम्बको दर्पण कहना) १०६. एकजालिगणे अन्य जातिगुणोपमारक असद्भुत व्यवहार (मदिरापान से अभिभूत मनिज्ञानको मूतं कहना) ११०. स्वजासिगुणे स्वजातिगुणोपचारक असन 'मराटार (ज्ञान ही श्रदान है, मान ही चाचि है. आदि कथन) १११, एकजतिद्रव्ये अन्यजातिगणोपचारक असदभूत व्यवहार (जीय मूनिक है आदि कयन) ११२. स्वजातिये स्मजालि गणोपचारक असबभूत व्यवहार (जैसे परमाण को ही रूप बहना) ११३. एफजातिद्रव्ये अन्यजातिपयायोपचारक असद्भूत व्यवहार (जैसे जीव भौतिक है आदि कथन) ११४. स्वजातिद्रव्ये स्वजातिपर्यायोपचारक असदभूत व्यवहार. (जैसे परमाणु बहुप्रदेशी है. आत्मा श्रुतज्ञान है आदि का) ११५. एकातिगुणे अन्यजातिद्रव्योपचारक प्रसदभूत व्यवहार (जैसे ज्ञान गुण ही सकल' देव्य है आदि कथन) ११६. स्वजातियणे स्वजातिगथ्योपचारक असद्भुत व्यबहार (जैसे धके रूप को ही द्रव्य बहना, रूपपरमाण आदि) ११७. एकजातिगुर्ण अन्यजातिपर्यायोपचारक असदभूत व्यवहार (जसे जान ही धन है आदि कचन) ११८. स्वजाति गुणे स्वजातिपर्यायोपचारक असद्भूत व्यवहार (जैसे ज्ञान पर्याय है आदि कथन) ११६. एकजातिपर्याय अन्यजातिपर्यायोपचारक असदभूत व्यवहार (जैसे घटाकार परिणत ज्ञानको घट कहना) १२०. स्वजातिपर्याधे स्वजातिव्योपचारक अमद्भूत व्यवहार (जैसे पृथ्वी आदि पुद्गलस्कंधको दध्य कह देना) १२१. एकजातिपर्याय अन्यजातिदस्योपचारक असमूत व्यवहार (जैसे यश-पक्षी आदिके शरीरको जीब कह देना) १२२. स्वजातिपर्याय स्वजातिगुणोपचारक असदभूत व्यवहार (जैसे अहिंसाको मुण कह देना व देहके विशिष्ट रूपक देखकर रूपवाला कहना) १२३. संश्लिष्ट स्वजात्युपचरित असद्भूत व्यवहार (जैसे यह परमाणु इस स्कंधका है आदि कपन) १२४. असंश्लिष्ट स्थजात्युपश्चरित असद्भूत व्यवहार (जैसे ये पुत्र स्त्री आदि इस जीवके हैं आदि कथन) १२५. संश्लिष्ट विजात्युपचरित असदभूत व्यवहार (जैसे यह शरीर इरा जीवका है, आदि कथन) १२६. असंश्लिष्ट विजात्युपचरित असद्भूत व्यवहार (जैसे यह धन वैभव मेरा है आदि कथन ) १२७, संदिल र स्वजातिविजात्युपरित असद्भूत व्यवहार (जैसे आभूषणसज्जित कन्या मरी है आदि कथन । १२८. असंश्लिष्ट स्वजातिविजात्युपचरित असद्भूत व्यवहार (जमे यह ग्राम नगर मेरा है आदि कथन) १२६. परकर्तृत्व अनुपरित असदभूत व्यवहार (जमे पुद्गलकर्म ने जीवको रागी कर दिया आदि कथन ) १२६०, परभोक्तृत्व अनुपचारित असदभूत व्यवहार (जैसे जीव पुद्गल कर्म को भोगता है आदि कथन) १२६४. परकतत्व उपचरित असद्भुत व्यवहार (जैसे जीव घट आदिका कर्ता हैं इत्यादि कथन) १२६८. परभोक्तत्व उपचरित असद भूत व्यवहार (जैसे जीव घट पट आदिका भोक्ता है इत्यादि कथन) १३०. परकर्मत्वं असद भूत व्यवहार (जैसे जीवके द्वारा ये पुष्य पाप बनाये गये आदि कथन) १३१. परकरणत्व असद भूत व्यवहार (जैसे जीव कषायभावके द्वारा पोद्गलिकों को बनाता है आदि कथन) १३२. परसप्रदानत्य असब भूत व्यवहार (जैसे पिता ने पुत्र के लिये मकान बनाया जादि कथन) १३३. परापादनत्व असद भूत य्यवहार (असे जीवसे इतने कम झड़कर अलग हो गये आदि कथन) १३४. पराधिकरणस्व असद मत व्यवहार (जैसे जीव में कर्म ठसाठस भरे हुए हैं आदि कथन) १३५. परस्वामित्व असर भूत व्यवहार (जैसे मेरा मह धन वैभव शरीर आदि है का कथन) १३६. स्वजातिकारणे स्वजातिकार्योपचारक व्यवहार (जैसे हिंसा आदिक दुःख ही हैं, आदिका प्रतिपादन) १३७. एक जातिकारणे अन्यजातिकारणोपचारक व्यवहार (जैसे अन्य धन प्राण हैं आदि कथने) १३८. स्वजातिकाय स्वजातिकारणोपमारक व्यवहार (जैसे श्रुत ज्ञान भी मति ज्ञान है अदि काथन)
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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