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समयसार रागो दोसो मोहो य आसवा पत्थि सम्मदिहिस्स । नहा शापान भावेगा निमा हेदू ण पच्चया होति ॥१७७।। हेदू चदुब्बियप्पो अबियपस्स कारणं भणिदं । तेसि पि य रागादी तेसिमभावे रण बझति ॥१७॥ रति प्रति मोह प्रारब, संज्ञानीके न होंय इस कारण । आत्रयभावके बिना, प्रत्यय बन्धक नहीं होते ॥ १७७ ।। मिथ्यादि चार प्रत्यय, होते हैं प्रष्ट कर्मके कारण ।
प्रत्यय भि रागहेतुक, रागादि बिना न विधि बांधे ॥१७८।। रागो द्वेषो मोहश्च आस्वा न संति सम्यग्दृष्टेः । तस्मादास्रवभावेन विना हेतवो न प्रत्यया भवंति ।।१७७॥ हेतुश्चतुर्विकल्पः अष्टविकल्पस्य कारणं भणितं | तेषामपि च रागादयस्तेषामभावे न बध्यते ॥१७८।।
रागद्वेषमोहा न संति सम्यग्दृष्टेः सम्यग्दृष्टित्वान्यथानुपपत्तेः । तदभावे न तस्य द्रव्यप्रत्यया: पुद्गलकर्महेतुत्वं बिभ्रति द्रव्य प्रत्ययानां पुद्गलकमहेतुत्वस्य रागादिहेतुत्वात् । ततो
नामसंज-राग, दोष, मोह, य, आसव, ण, अस्थि, सम्मादिद्वि, त, आसवभाव, विणा, हेदू, ण, पच्चय, हेदु, चदुवियप्प, अट्टवियप्प, कारण, भणिद, त, पि, य, रागादि, त, अभाव, ण। धातुसंश-रज्ज रागे, दुस वैकृत्ये अप्रीतौ च, अस सत्तायां, हो सत्तायां, भण कथने, बन्ध बन्धने । प्रातिपदिक-राग, द्वेष, कारणके कारणका प्रभाव होनेपर कार्यका प्रभाव प्रसिद्ध होनेसे ज्ञानीके बन्ध नहीं है ।
भावार्थ-सम्यग्दृष्टि, रागद्वेषमोहके प्रभाव बिना नहीं हो सकता ऐसा जो अविनाभाव नियम यहां कहा है सो वह मिथ्यात्वसम्बन्धी रागादिकोंका प्रभाव जानना इस प्रायोगिक प्रक्रियामें उन्हींको रागादि माना गया है । सम्यग्दृष्टि होनेके बाद कुछ चारित्रमोह सम्बन्धी राग रहता है सो वहाँपर नहीं गिना, यह गौण है इसलिये उन भावासयोंके बिना द्रध्यात्रव बंधक कारण नहीं हैं, कारणका कारण न हो तो कार्यका भी अभाव हो जाता है यह सुप्रसिद्ध है । इस दृष्टिसे सम्यग्दृष्टि ज्ञानी ही है इसके बन्ध नहीं है । यहाँ सम्यग्दृष्टिको ज्ञानी कहनेको अपेक्षा यह है कि प्रथम तो जिसके ज्ञान, हो वही ज्ञानी कहलाता है सो सामान्यज्ञानकी अपेक्षा तो सभी जीव ज्ञानी हैं और सम्यग्ज्ञान मिथ्याज्ञानकी अपेक्षा देखा जाय तो सम्यग्दृष्टिके सम्य. ज्ञान है उसकी अपेक्षा ज्ञानी है, किन्तु मिथ्यादृष्टि के सम्यग्ज्ञान नहीं, अतः वह प्रज्ञानी है । यदि सम्पूर्ण ज्ञानकी अपेक्षा ज्ञानी कहा जाय तो केवली भगवान ज्ञानी हैं, क्योंकि जब तक सर्वज्ञ न हो तब तक पौयिक प्रज्ञानभाष बारहवें गुरणस्थान तक सिद्धान्तमें कहा है । इस तरह तथ्य विधिनिषेध अपेक्षासे निर्बाध सिद्ध होते हैं सर्वथा एकांतसे कुछ भी नहीं सधेगा। सो