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समयसार सव्वे पुव्वणिवद्धा दु पच्चया संति सम्मदिहिस्स । उपयोगप्पाअोगं बंधते कम्मभावेण ॥१७३॥ संती दु गिरुखभोज्जा बाला इत्थी जहेब पुरिसस्स । बंधदि ते उवभोज्जे तरुणी इत्थी जह णरस्स ॥१७४।। होदूण णिरुखभोजा तह बंधदि जह हवंति उवभोज्जा । सत्तट्टविहा भूदा णाणावरणादिभावेहि ॥१७५॥ एदेण कारगोण दु सम्मादिट्ठी अबंधगो होदि । पासवभावाभावे ण पच्चया बंधगा भणिदा ॥१७६॥ पूर्वबद्ध सब प्रत्यय, ज्ञानीके रह रहे हैं सत्तामें । उपयोगयुक्त यदि हों, तो बांधे कर्मभावोंसे ॥१७॥ सत्तास्थ निरुपभोग्या, वाला स्त्री यथा है मानवके । उपभोग्य हुए बांधे, तरुणी नारी यथा नरको ॥१७॥ वे निरुपभोग्य विधि ज्यौं, पाकसमय भोगयोग्य हो जायें। त्यों ही शानावरणा-दिक पुद्गलकर्मको बांधे ॥१७५।। इस कारणसे सम्यग्-ष्टी आत्मा प्रबंधक कहा है।
क्योंकि रागादि नहिं हों, तो प्रत्यय हैं नहीं बन्धक ॥१७६॥ नामसंज्ञ-सब्ब, पुठवणिबद्ध, दु, पच्चय, सम्मदिदि, उवओगप्पाओग्ग, कम्मभाव, दु, णिरुवभोज्ज, बाला, इत्थी, जह, एव, पुरिस, त, उवभोज्ज, तरुणी, इत्थी, जह, पर, णिरुवभोज्ज, तह, जह: उवभोज्ज, [बाला स्त्रो] बालिका स्त्री भोगने योग्य नहीं होती उस प्रकार [निरुपभोग्यानि] उपभोगके अयोग्य [भूत्वा] होकर भी [तानि] वे ही जब [उपभोग्यानि] भोगने योग्य होते हैं तब [बध्नाति] जीवको, पुरुषको बांधते हैं अर्थात् जीव पराधीन हो जाता है, [यथा] जैसे कि [तरुणी स्त्री] बही बाला स्त्री जवान होकर [नरस्य] पुरुषको बाँध लेती है अर्थात् पुरुष उसके प्राधीन हो जाता है यही बँधना है । [एतेन तु कारणोन] इसी कारणसे [सम्यग्दृष्टिः] सम्यग्दृष्टि [प्रबंधकः] प्रबंधक [भरिणतः] कहा गया है क्योंकि [प्रावभावाभावे] प्रास्रवभाव जो राग-द्वेष मोह उनका प्रभाव होनेपर [प्रत्ययाः] मिथ्यात्व आदि प्रत्यय सत्तामें होने पर भी [बंधकाः] आगामी कर्म बंधके करने वाले [न] नहीं [भरिणताः] कहे गये हैं ।
टीकार्य-जैसे. सत्ता अवस्थामें तत्कालकी विवाहित बाल स्त्रोकी तरह पहिले अनुप