________________
३०८
समयसार अय ज्ञानिनो द्रव्याखवाभावं दर्शयति
पुढवीपिंडसमागा पुवणिबद्धा दु पच्चया तस्स । कम्मसरीरेण दु ते बद्धा सब्वेपि णाणिस्स ॥१६॥
पूर्वबद्ध सब प्रत्यय, ज्ञानीके पृथ्विपिण्ड सम जानो।
___ बँधे हुये विधिसे वे, बंधे नहीं किन्तु आत्मासे ॥१६॥ पुथ्वीपिंडसमानाः पूर्वनिबद्धास्तु प्रत्ययास्तस्य । कर्मशरीरेण तु ते बद्धाः सर्वेऽपि ज्ञानिनः ।। १६६ ।।
ये खलु पूर्वमज्ञानेनैव बद्धा मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगा द्रव्यास्रवभूता; प्रत्ययाः ते ज्ञानिनो द्रव्यांतरभूता अचेतनपुद्गलपरिणामत्वात् पृथ्वीपिडसमानाः। ते तु सर्वेऽपि स्वभावत
__नामसंज्ञ-पुढवीपिंडसमाण, पुदवणिबद्ध, दु. पच्चय, त, कम्मसरीर, दु, त, बद्ध, मन्ने, पि, णाणि । धातुसंज्ञ-प्रति-अय गतौ, बंध बंधने । प्रातिपदिक- पृथ्वीपिण्डसमान, पूर्वनिबद्ध, तु, प्रत्यय. तत्, कर्मशरीर, तु, तत्, बद्ध, सर्व, अपि, ज्ञानिन् । मूलधातु --प्रति-अय गती, बन्ध बन्धने । पदविधरण---पुढवीनिबद्धाः] पहले बँधे हए सपि] सभी [प्रत्ययाः] कर्म [पृथियोपिंडसमानाः] पृथ्वीके पिंड समान हैं [तु] और वे [कर्मशरीरेण] कार्मण शरीरके साथ [बद्धाः] बंधे हुए हैं ।
तात्पर्य-कर्म व कर्मोदयज भावसे भिन्न प्रात्मस्वरूपको जाननेपर कर्म पृथ्वीपिण्डके समान पुद्गलपिण्ड मात्र ही नजर पाते हैं ।
___टोकार्थ----जो पहले अज्ञानसे बांधे मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग रूप द्रव्यास्त्रव. भूत प्रत्यय हैं वे ज्ञानीके अन्य द्रव्यरूप अचेतन पुद्गलद्रव्य के परिणाम होनेसे पृथिवीके पिंड समान हैं । और वे सभी अपने पुद्गलस्वभावसे कार्मरण शरोरसे ही एक होकर बँधे हैं, परन्तु जीवसे नहीं बंधे हैं । इस कारण ज्ञानीके द्रव्यालबका प्रभाव स्वभावसे ही सिद्ध है।
___ भावार्थ-जब प्रात्मा अन्तस्तत्वका ज्ञानी हुप्रा, तब झानीके भावावका तो अभाव हुआ ही और द्रव्यास्रव जो कि मिथ्यात्वादि पुद्गल द्रव्यके परिणाम हैं वे कार्मण शरीरसे स्वयमेव बँध रहे हैं, अन्तः ऐसा ज्ञान होनेसे व आत्माभिमुख परिणमा होनेसे भावासबके बिना वे आगामी कर्मबंधके कारण नहीं हैं, और पुद्गलमय हैं इस कारण अमूर्तिक चतन्यस्वरूप जीवसे स्वयमेव ही भिन्न हैं, ऐसा जानी चानता है।
अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं--भावा इत्यादि । अर्थ-भावास्रवके अभावको प्राप्त हुमा ज्ञानी द्रव्यास्त्रबस तो स्वयमेव ही भिन्न है, क्योंकि ज्ञानी तो सदा ज्ञानमय ही एक भाव वाला है, इस कारण निरामय ही है, मात्र एक शायक ही है । भावार्थ-~भावास्रव जो राग द्वेष मोहका लगाव उसका तो ज्ञानीके अभाव हो गया है और जो द्रव्यानव हैं पुद्गलपरिणाम हैं, उनसे तो स्वयं स्वरूपतः भिन्न है, इसलिये शानी निरास्रव ही है ।