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________________ ६०. सत्तासापेक्ष नित्याश उपर्यायाथिकनय (जैसे-एक समयमें श्रयात्मक पर्याय, उत्पाश्व्ययध्रौव्य या भूतमाविवर्त मानयर्यायका परिचय) ६१. उपाधिसापेक्ष नित्याश पर्यायाधिकनय (जैसे-संसारी जीवोंके उत्पत्तिमरण हैं, विषय कषाय हैं का परिचय) । व्यवहार (यथार्थ प्रतिपादक व्यबहार) ६२. भत्तनगम प्रतिपादक महार (भूतकालीन स्थितिको वर्तमानमें जोड़नके संकल्प का घटनासम्बन्धित प्रतिपादन) ६३ माचिनंगमप्रतिपादक व्यवहार (भविष्यत्कालीन स्थितिको वर्तमानमें जोड़ने के संकल्पका घटनासम्बन्धित प्रतिपादन) ६४, वर्तमायनेगमप्रतिपावक ब्यवहार (बर्तमान निष्पन्न अनिष्पन्नको निष्पन्नवत संकल्पका प्रतिपादन) ६५. परसंग्रह द्रव्याथिक प्रतिपादक व्यवहार (जैसे-'सत्' कहकर समस्त जीवपुदगलादिक सतोंके संग्रहका प्रतिपादन) ६६. अपरसंबह अध्याधिक प्रतिपादक व्यवहार (जैसे सत्को भेदे गये जीव' व अजीवमें से जीव कहकर समस्त जीवोंके संग्रहका प्रतिपादन) , ६६A. परमशुद्ध अपरसंग्रहदव्याधिकप्रतिपादक व्यवहार (जैसे 'ब्रह्म' कहकर सर्व जीवोंमे कारणसमयसारका कथन) ६६. सुखअपरसंग्रह प्रतिपावक वहार (जैसे मुक्त जीव कहकर समस्त कर्म मुक्त सिद्ध भगवन्तोंका प्रतिपादन) ६६. अशुद्धअपरसंग्रह तयायिक प्रतिपादक व्यवहार (जैसे संसारी जीव कहकर समस्त संसारी जीवोंका प्रतिपादन) । ६७. अपरसंग्रहभेदकव्यवहारनप द्रव्यापिकप्रतिपादक ध्यपहार (जैसे सत् २ प्रकार के हैं जीव अजीव, आदि, यों परसंग्रहको भेदनेका प्रतिपादन) ६८. अपर संग्रहभेवकव्यवहारमय द्रव्याथिकप्रतिपादक व्यवहार (जैसे जीव २ प्रकारके हैं मुक्त संसारी आदि यों अपर. संग्रहको भेदनेका प्रतिपादन) ६RA. अन्तिम-अपरसंपहभेदकव्यवहारनय व्यायिक प्रतिपादक व्यवहार (जैसे द मणुक स्कंधको भेद कर एक अणुका प्रतिपादन) ६.B. अन्तिम अखण्डव्यवहारनयध्याथिकप्रतिपादक व्यवहार (जैसे एक अणु, एक जीव, आदि अधण्ड सत्का प्रतिपादन) ६६ अखण्ड परमश व सब भतम्यवहार (जैसे अनावनन्त अहेतुक अखण्ड चैतन्यस्वभावमात्र आत्माका प्रतिपादन) ६EA. गुणिभेदक परम सब भूत व्यवहार (जेसे आत्माका स्वरूप सहज चैतन्यस्वरूप है आदि प्रतिपादन) ७... सगग परमाश उसद भूत व्यवहार (जैस आत्माके सहज मानादि अनन्तचतुष्टय का प्रतिपादन) GOA प्रतिषेधक बनयप्रतिपावक व्यवहार (जैसे जीव पुगद्लकमंका अकर्ता है आदि कथन) ७१. अभेद श च सदभूत व्यवहार (जैसे शुद्धपर्यायमय आत्माका प्रतिपादन) ७२. सभेव श स भूतव्यवहार (जैसे आत्माके केवलज्ञान, केवलदर्शन, आदि शुद्धपर्यायवान आत्माका प्रतिपादन) ७३. कारककारकिभेवक सब भूतय्यबहार (जैसे आत्मा आत्माको जानता है, आत्मा के द्वारा जानता है आदि एक ही पदार्थमें कर्ताकर्म करण आदिका कथन) ७३. कारककारकिर्भवक अश द्धसद्भूतव्यवहार (जैसे जीवधिभावोंका कर्ता जीव है आदि कथन) ७४. अनुपचारित अश रासन भूत व्यवहार (असे श्रेणिगत मुनिके रागादिविकारका प्रतिपादन) ७५. उपचरित अशु ससब भूतव्यवहार (जैसे जीवके व्यक्त क्रोध आदि व्यक्त अशुद्ध पर्यायोंका प्रतिपादन) ४६. उपाधिसापेक्ष अश अ द्रव्यायिकप्रतिपावक व्यवहार (जैसे पुद्गलकर्म विपाकका निमित्त पाकर विकृत हुए भीषका प्रतिपादन) ७७. उपचरित उपापिसापेक्ष अाख व्याथिकप्रतिपावक व्यवहार (जैसे विषयभूत पदार्थ में उपयोग देनेपर हुए व्यक्त रिकारका कथन)
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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