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________________ i ३७. सत्तागणोत्पादव्ययक विशुद्धपर्यायाधिकनय (जैसे प्रति समय पर्याय विनाशक है आदि परिचय ) ३८. सत्तासापेक्ष नित्य अशुद्धपर्यायार्थिकनय (जैसे-एक समय में हुए श्रयात्मक पर्यायोंका परिचय ) ३६. उपाधिनिरपेक्ष नित्य शुद्धपर्याय (जैसे- सिद्ध पर्यायारी जीवोंकी शुद्ध ४०. उपाधिसापेक्ष नित्य अशुपाधिकय (जैसे- संसारी जीवोंके उत्पाद और मरण है आदि परिचय) शब्दनय पर्यायार्थिकनथ आदि का परिचय ) वचन आदि व्यभिचार हटाकर किसी उपयुक्त शब्दसे कहना ) वाच्य अनेक अर्थोंमें से किसी एक रूढ अर्थको ही कहना ) (भिक्रिया परिणत होते हुए के समय ही उसी शब्दसे कहना) निश्चयनय ४१. शब्द (ऋअसूननयको लिङ्क ४२. समशिन द्वारा नियत ४३. एवंभूत ४४. अखण्ड परमशुद्ध निश्चयमय (जैसेण्डा सहज चैतन्यस्वभावमात्र आत्माका परिचय ) ४५. शक्ति परमशनिश्चय (जैसे- आत्मा सहज ज्ञान दर्शन शक्ति वीर्यवान है आदि परिचय ) ४६. शुद्धनिश्चयन (जैसे-जीव केवलज्ञानी है, यदि शुद्धपर्यायात्मक द्रव्यका परिचय परिचय ) ४६. सभेः शत्रुनि (जैन जीके केवलज्ञान है, केवलदर्शन है, अनन्त सुख है आदि परिचय) ४६. अपूर्णशुद्ध निश्चयनय (जैसे स्वरभेदविज्ञानी एकत्वविभक्त आत्माकी ख्याति होनेसे ज्ञानमय भाव का परिचय ) ४७. अशुद्ध arare (जैसे-जीव रागी है आदि अशुद्धपर्यावमय द्रव्यका परिचय ) ४७. समंद अशुदिचय (जैसे- जीवके श्री है, मान है, माया है, लोभ है आदि भेदसहित अशुद्ध का परिचय ) ४८. विवक्षित देशुद्धनिवसनय (जैसे- रामादिक पौगलिक हैं, यो औपाधिक भावोंको उपाधिके लिये सौंपकर आत्म स्वरूप को शुद्धस्वभाव मात्र निरखना) ४६. शुद्ध (जैसे नयविकल्प जतिकान्त अखण्ड अन्तस्तत्त्रका, अभेद दर्शन ) ४६. प्रतिषेधक वय (जैसे जीवपुद्गलकर्मका गात्रादिका अकर्ता है आदि परिचय) ४६४ उपादानष्टि (जैसे जीनकी योग्यानुसार उसका परिणमन उसी जीव में निरखना) व्यवहार नय ५०. परमशुद्ध र्भवविषयी न या भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (जैसे- आत्मा के ज्ञान है, दर्शन है आदि पाश्वत गुणोंके रूपसे आत्माका परिचय) ५१. शुद्धभेदेविषयी व्यायितय या वाहतूक्ष्म ऋजुसूत्रनय (जैसे- आत्माका केवलज्ञान, अनन्त आनन्द आदि निरुपाधि शुद्ध पर्यायों का परिचय) ५२. अशद्ध पर्यायी व्यवहार या सूक्ष्म ऋजुसून (जैसे जीवके क्रोध, मान आदिका परिचय ) ५३. उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यामि (जैसे- कमदयविपाक के सान्निध्य में जीत्र विकाररूप परिणमता है) ५३. निमित्तवृष्टि (जैसे चक्र के आधारपर दण्ड द्वारा भ्रमण होकर जल मिश्रण दशा में कुम्हार के हस्तव्यापारके निमित्तसे मिट्टीका घड़ा बनना आदि परिचय ) ५४. उत्पादध्ययसापेक्ष अशुद्ध द्वार्थिकनय (जैसे द्रव्य उत्पादव्ययधोत्र्ययुक्त है, यो त्रितययुक्त द्रव्यको निरखना) ५५. अदक्ष अस्थूल ऋजुनून (जैसे नर नारक, तियंच, देव, आदि विभावद्रव्यव्यञ्जन पर्यायें निरखना) ५६. शुद्धस्कूल ऋजुसूत्रनय (जैसे- वरमदेह न्यून आकारवाली सिद्धपर्याय स्वभाव द्रव्यव्यञ्जन पर्याय निरखना) ५७. अनादिनित्य पर्यायाथिकनय (जैसे-मेर नित्य है आदि प्रतिसमय बनना बिगड़ना होनेपर भी बना रहना निरखना ) ५८. साविनित्य पर्याय विनय (जैसे सिद्धपर्याय नित्य है, आदि उपाधिके अभाव से सदा रहनेवाली पर्यायका परिचय ) ५६. गणोत्यग्राहक नित्याद्ध पर्यायार्थिकतय (जैसे- प्रतिसमय पर्याय विनाशक है, क्षणिक पर्यायका परिचय ) ( ३६ )
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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