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________________ १०. अपरसंग्रहोंरक व्यवहारमयनामक थ्याथिकनम (जैसे-जीव दो प्रकारके हैं मुक्त व संसारी, इस प्रकार शुख व अशुद्ध का भेद किये बिना जीवोंका भेदोंमें परिचय) ११. अन्तिम अपरसंग्रह वकव्यवहारनयनामक ख्यायिकनय (जैसे-पृथक् पृथक् एक-एक सत् व मणुक आदि स्कन्ध में एक अणुका परिचय) १२. परमशुद्ध अपरसंग्रहभेवक द्रव्यहारनयना किनाः स्यान्मकार सम्बद्ध अनन्त आत्मावोंका परिचय) १३. शुद्ध अपरसंग्रहभेवक व्यवहारनयनामक द्रव्याधिकनय (जैसे-मुक्त जीवोंका क्षेत्र काल गति लिङ्ग आदिसे परिचय) १४, अशुद्ध अपरसंग्रहभेदक व्यवहारनधनामक द्रध्यापिकनय (जैसे-संसारी जीवोंका स स्थावर आदि विभागोंसे परिचय) अन्तिम व्यवहारनय त्याथिक १५. परमशव अभेदविषयी अन्तिम व्यवहारमयनामक द्रव्याधिकनय (जैसे आत्मा चैतन्यस्वरूपमात्र है आदि) १६. परमशव भंविषयो अन्तिम व्यवहारनयनामक द्रष्यायिकनम (आत्मामें ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण हैं। १७. माद्ध अभेदविषयी अन्तिम व्यवहारनयनामक प्राधिकनय (जैसे भगवन्त आत्मा केवलज्ञानी है आदि) १८, शुखभेवधिषयी अग्तिम व्यवहारनयनामक प्रत्याधिकनय (जैसे भगवन्त आत्मामें अनंतज्ञान, दर्शन आदि हैं) १६. अव्यक्त अशुब अन्तिम व्यवहारनय-नामक द्रव्यायिकनय (जैसे-उपशम या अपकश्रेणिमें आया हुआ मुनि) २०. व्यक्त मशुद्ध अन्तिम व्यवहारनयनामक बध्यार्थिकमय (जैसे किसी व्यक्तिपर क्रोध करनेवाला कोई एक मनष्य) २१. उपाधिनिरपेक्ष राख व्यायिकनय (जैसे-संसारी जीव सिद्ध समान शुद्धात्मा है आदि, उपाधिका सम्बन्ध नरक कर स्वभावमाध निरखना) २२. उत्पादग्ययगीणसत्ताग्राहक शुद्धद्रव्यापिकनय (जैसे द्वन्य नित्य है, आदि, प्रौव्यकी मुख्यतासे बस्तुका निरसना) २३. भेदकल्पनानिरपेक्ष शद्रव्यापिकमय (जैसे-निजगुणपर्यायसे अभिन्न द्रव्य है, यों शुद्ध स्वरूप निरखना) २४. उपाधिसापेक्ष अशुबध्याथिकनय (जैसे कर्मोदयविपाकके सान्निध्यमें जीव विकाररूप परिणमता है, आदि परिचय) २%A, उपाध्यमानापेक्ष शुद्ध व्यायिक्रमय (जैसे-कर्मोपाधिके अभावका निमित्त पाकर कर्मत्वका दूर होना निरखना) २४B शुखभावनापेक्ष शुद्धद्रश्यापिकनय (जैसे-आत्माके शुद्धपरिणामका निमित पाकर कर्मत्वका दूर होना निरखना) २५, उत्पावव्ययसापेक्ष अशुखद्रव्याथिकनय (जैसे-द्रव्य उत्पादव्ययनौम्पयुक्त है, यों विलक्षणासत्तामय द्रव्य निरखना) २६. भेव ल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्याथिकनय (जैसे-आत्माके ज्ञान है, दर्शन है, चारित्र हे आदि गुणोंका परिचय) २७. अन्धय ग्याथिकाय (जैसे-त्र कालिक गुणपर्यायस्वभावी आत्मा, आदि मूलवस्तु निरखना) २८. स्वव्यादिग्राहक न्यायिकमय (जैसे-स्वद्रव्यक्षेत्रकासभावसे वस्तुके अस्तित्व का परिचय) २६. परद्रव्यादिप्राहक द्रव्याथिकनय (जैसे-परद्रव्यक्षेत्रकालभावसे वस्तु के नास्तित्व का परिचय) ३०. परममावग्राहक द्रव्याथिकनय (जैसे-सहज अखण्ड ज्ञानस्वरूप आत्मा का परिचय) ३०A. शुद्धपारिगामिकपरममावग्राहक शुद्धद्रव्याथिकनय (जैसे-बद्धाबद्धादिनयविकल्परूप जीव नहीं होता आदि परिचय) प्रर्थनय पर्यायाधिक ३१. अशुद्धस्थूल ऋजसूत्रनयनामक पर्यायायिकनय (जैसे-नर नारक आदि विभाष द्रव्यब्यजन पर्यायोंका परिचय) ३२. शुभस्यूल ऋजुसूत्रनयनामक पर्यायाधिकनय (जैसे-सिद्धपर्याय आदिक स्वभावद्रव्यच्यञ्जनपर्यायोंका परिचय) ३३. अशुद्धसूक्ष्म ऋजुसूत्रनयनामक पर्यायाचिकनय (जैसे क्रोध आदि विभावगुणव्यञ्जनपर्यायोंका परिचय) ३४. सुखसकन ऋजसत्रनयनामक पर्यायाथिकनय (जसे केवलज्ञान आदि स्वभावगुणव्यसनपर्यायोंका परिचय) ३५. अमारिनित्य पर्यायाथिकनय (जैसे-मेक निस्प है आदि, प्रति समय आय व्यय होते हुए भी वैसे के वैसे ही बने ___रहनेवाले पदार्थों का परिचय) ३६. सादिनित्य पर्यायायिकनय (जैसे सिद्ध पर्याय आदि, अशुद्धता हटकर सादिशुद्ध रहने वाले पर्यायों का परिचय)
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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