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पुण्यपापाधिकार ___ अथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वं दर्शयति
सम्मत्तपडिणिबद्ध मिच्छत्तं जिणवरेहि परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो मिच्छादिहिति णायब्बो ॥१६१॥ गाणस्म पडिशिवा अण्णा जिगावरहि परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो अण्णाणी होदि गायब्बो ॥१६२॥ चारित्तपडिणिवद्ध कसायं जिणवरेहि परिकहियं । तस्सोदयेगा जीवो अचरित्तो होदि णायब्बो॥१६३॥ (त्रिकलम्) सम्यक्त्वका विरोधक, जिनवरने मिथ्यात्वको बताया। उसके उदयसे प्रात्मा, मिथ्यादृष्टी कहा जाता ॥१६१॥ ज्ञानका प्रतिनिबन्धक, मुनीश प्रज्ञानको बताते हैं । उसके उदयसे प्रात्मा, अज्ञानी वर्तता जानो ॥१६२॥ चारित्रका विरोधक, मुनीन्द्रने है कषाय बतलाया।
इसके उदयसे प्रात्मा, हो जाता है प्रचारित्री ॥१६३॥ सम्यक्त्वप्रतिनिबद्धं मिथ्यात्वं जिनवरः परिकथितं । तस्योदयेन जीवो मिथ्यादृष्टिरिति ज्ञातव्यः ।।१६१॥ ज्ञानस्य प्रतिनिबद्धं अज्ञानं जिनवरैः परिकथितं । तस्योदयेन जोवोऽज्ञानी भवति ज्ञातव्यः ॥१६२|| चारित्रप्रतिनिबद्धः कषायो जिनवरैः परिकथितः । तस्योदयेन जीवोऽचारित्रो भवति ज्ञातव्यः ॥१६३१
सम्यक्त्वस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबंधक किल मिथ्यात्वं, तत्तु स्वयं कव तदु. दयादेव ज्ञानस्य मिथ्योदृष्टित्वं । ज्ञानस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबंधक किलाज्ञानं, तत्त स्वयं कमैव तदुदयादेव ज्ञानस्याज्ञानत्वं । चारित्रस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबंधक: किल कषायः, स तु स्वयं कमैव तदुदयादेव ज्ञानस्याचारिवत्वं । अतः स्वयं मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात् कर्म
नामसंज्ञ-सम्मत्तपडिणिबद्ध, मिच्छत्त, जिणवर, परिकाहय, तस्स, उदय, जीव, मिच्छादिट्टि, इत्ति, णायब्ब, णाण, पडिणिबद्ध, अण्णाण, जिणवर, परिकहिय, तस्स. उश्य, जीव, अण्णाणि, णादव, चारित्तकारण इसका भी कर्म सामान्यके प्रतिषेधके कथन में प्रतिषेध ही जानना।
अब इसी अर्थ का कलशरूप काव्य कहते हैं-संन्यस्त इत्यादि । अर्थ- मोक्षके चाहने वालों को यह समस्त कर्म ही त्यागने योग्य हैं। इस तरह समस्त ही कर्मके छोड़नेपर पुण्य व पापकी तो कथा ही क्या है (कर्म सामान्यमें दोनों हो आ जाते हैं)। यों समस्त कर्मोका त्याग होनेपर ज्ञान, सम्यक्त्व प्रादिक अपने स्वभावरूप होनेसे मोक्षका कारण हुमा कर्मरहित अवस्थाले जिसका रस प्रतिबद्ध (उद्धत) है ऐसा अपने प्राप दौड़ आता है । भावार्थ--कर्मके