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________________ समयसार कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते परभावभूतमलावच्छन्न श्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् ।। अतो मोक्षहेतुतिरोधानकरणात् कम प्रतिषिद्ध ।। १५७-१५६ ।। ज्ञान-प्र० ए० । होदि भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन किया। णायव्यं ज्ञातव्यं-प्रथमा एकत्रचन कृदन्त । वस्थस्स वस्त्रस्य-षष्ठी एक० । सेदभावो श्वेतभाव:-प्रथमा एकः | जह यथा-अव्यय । णासेदि नश्यति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया । मलमेलणासत्तो मलमेलनासक्तः-प्रथमा एक० । कसायमलोच्छण कषायमलावच्छन्न:-प्रथमा एक । तह तथा-अध्यय। चारितं चारित्र-प्रथमा एक० । पि अपिअव्यय । णादब्वं ज्ञातव्यं-प्रथमा एकवचन कृदन्त ।। १५७.१५६।। हेतुत्वका प्रतिषेध किया था। अब प्रतिषेध्य उन्हीं कर्मोको मोक्ष हेतुतिरोधायिता इस गाथामें प्रसिद्ध की है। तथ्यप्रकाश-१-समस्त कर्म रत्नत्रयस्वरूप मोक्ष हेतुका तिरोधान करते हैं, अतः कर्म प्रतिषेध्य हैं । २. ज्ञानका सम्यक्त्व स्वभाव (सम्यकपना) मोक्ष का हेतु है वह मिथ्यात्व कर्ममल परभावसे तिरोहित है। ३--ज्ञानका ज्ञानस्वभाव मोक्षका हेतु है वह प्रज्ञान (ज्ञानावरण) नामक कर्ममल परभावसे तिरोहित है। ४. ज्ञानका चारित्रस्वभाव मोक्षका हेतु है वह कषाय कर्ममल परभावसे तिरोहित है । ५- ये पौद्गलिक कर्म निमित्तरूपसे मोक्ष हेतुके बाधक हैं मोर इन कर्मों के निमित्तभूत व नैमित्तिकभूत शूभाशुभ कर्म निजमें मोक्ष हेतुके बाधक हैं । ६--शुद्धोपयोगसे पूर्व होने वाले शुभोपयोगके साधनभूत कर्म मोक्षहेतुके परम्परया साधक हैं, साक्षात् बाधक हैं। __सिद्धान्त—(१) पौद्गलिक कर्मविपाक मोक्षहेतुका निमित्तरूपसे बाधक है । (२) शुभाशुभभाव मोक्षहेतुका उपादानतया बाधक है। दृष्टि-१- निमित्तदृष्टि (५३)। २- उपादानदृष्टि (४६ ब) । प्रयोग---पुण्यपापकर्मको व पुण्यपापभावको अलक्षित करके अन्तःप्रकाशमान परमार्थमोक्षहेतुभूत ज्ञानस्वभावमें उपयुक्त होनेका पौरुष करना ॥ १५७-१५६ ॥ अब कर्म स्वयमेव बंध है, यह सिद्ध करते हैं;-[सः] यह प्रात्मा स्वभावतः [सर्वज्ञानदर्शी] सबका जानने देखने वाला है तो भी [निजेन कर्मरजसा] अपने कर्मरूपो रजसे [अयच्छन्नः] आच्छादित हुमा [संसारसमापन्नः] संसारको प्राप्त होता हुआ [सर्वतः] सब प्रकार से [स] सब बस्तुको [न विजानाति] नहीं जानता। तात्पर्य-ज्ञाता द्रष्टा स्वभाव होनेपर भी संसारस्थ प्राणी कर्माच्छादित होनेसे सर्वज्ञाता हों हो पाता। टीकार्थ-जिस कारण स्वयमेव ज्ञानरूप होनेसे सब पदार्थोको सामान्य विशेषतासे
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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