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________________ पुण्यपापाधिकार २९१ स्वभावः परभावेनाज्ञाननाम्ना कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते परभावभूतमलाबच्छन्न श्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् । ज्ञानस्य चारित्रं सोक्षहेतुः स्वभावः परभावेन कषायनाम्ना मूलधातु-णस नाशे दिवादि, द अपवारणे, मिल लें मिल संगमे तुदादि, मल धार स्वादि, कष हिंसार्थः । पचविवरण – वत्थस्स वस्त्रस्य पष्ठी एक० । सदभावो श्वेतभावः प्रथमा एकवचन । जह यथाअव्यय । णासेदि नश्यति - वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया । मलमेलणासत्तो मलमेलनासक्तः - प्र० ए० । मिच्छत्तमलोच्छण्णं मिध्यात्वमलाबच्छन्नं - प्र० ए० । तह तथा अव्यय सम्मतं सम्यक्त्वं प्र० एक० । खु खलु - अव्यय । णायव्वं ज्ञातव्यं प्र० एक० कृदन्त । वत्थस्स वस्त्रस्य षष्ठी एक० | सेदभावो श्वेतभाव:प्र० ए० । जह यथा - अव्यय । पासेदि नश्यति वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन । मलमेलणाससो मल-मेलनासक्तः - प्रथमा एकवचन कृष्ण शा० तह तथा अव्यय । गाणं [ ज्ञातव्यं ] श्राच्छादित हो रहा है ऐसा जानना चाहिए। [ थथा ] जैसे [ वस्त्रस्य श्वेतभावः ] वस्त्रका श्वेतपना [ मलमेलनासक्तः ] मलके मेलसे लिप्त होता हुआ [ नश्यति ] नष्ट हो जाता है [ तथा ] उसी प्रकार [ प्रज्ञान मलावच्छन्नं ] प्रज्ञानमलसे व्याप्त हुआ [ज्ञानं] ग्रात्माका ज्ञान भाव [भर्थात ज्ञातव्यं ] श्राच्छादित होता है ऐसा जानना चाहिये तथा [ यथा ] जैसे [ वस्त्रस्य श्वेतभावः ] कपड़ेका श्वेतपना [ मलमेलनासक्तः ] मलके मिलने से व्याप्त होता हुआ [ नश्यति ] नष्ट हो जाता है [ तथा] उसी तरह [ कषायमलाबच्छन्नं] कषायमल से व्याप्त हुआ [ चारित्रं अपि ] प्रात्माका चारित्र भाव भी प्राध्यादित हो जाता है ऐसा [ ज्ञातव्यं ] जानना चाहिये । तात्पर्य - कर्मद्वारा रत्नत्रय तिरोहित होता है अतः कर्मका प्रतिषेध करना बताया है । टीकार्थ - ज्ञानका सम्यक्त्व मोक्षका कारणरूप स्वभाव है, किंतु वह परभावस्वरूप मिथ्यात्व कर्ममैलसे व्याप्त होनेके कारण तिरोभूत हो जाता है जैसे कि परभावभूत मैलसे व्यास सफेद वस्त्रका स्वभावभूत श्वेत स्वभाव तिरोभूत हो जाता है । ज्ञानका ज्ञान मोक्षका काररणरूप स्वभाव है, वह परभावरूप प्रज्ञान नामक कर्मरूपी मलसे व्याप्त होनेसे तिरोहित किया जाता है, जैसे परभावरूप मैल (रंग) से व्याप्त हुआ श्वेत वस्त्रका स्वभावभूत सफेदपन तिरोहित किया जाता है। ज्ञानका चारित्र भी मोक्षका कारणरूप स्वभाव है, वह परभावस्वरूप कषायनामक कर्मरूपी मैलसे व्याप्त होनेसे तिरोहित किया जाता है, जैसे परभावस्वरूप मैल (रंग) से व्याप्त हुन सफेद कपड़ेका स्वभावभूत सफेदपन तिरोहित किया जाता है। इस कारण मोक्षके कारणरूप सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रका तिरोधान करनेसे कर्मका निषेध किया गया है । भावार्थ - सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप ज्ञानके परिणमनस्वरूप मोक्षमार्गके प्रतिबंधक मिध्यात्व अज्ञान कषायरूपी कर्म हैं । इसलिये कर्मका निषेध श्रागममें बताया गया है । प्रसंगविवरण -- अनन्तरपूर्वं गाथा में परमार्थमोक्ष हेतु के प्रतिरिक्त अन्य कर्मके मोक्ष
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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