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समयसार अथ परमार्थमोक्षहेतु तेषां दर्शयति
जीवादीसदहणं सम्मत्तं तेसिमधिगमो णाणं । रायादीपरिहरणं चरणं एसो दु मोक्खपहो ॥१५५।। जोवादिक तस्योंका, प्रत्यय सम्यक्त्व बोध संज्ञान ।
रागादि त्याग चारित, यही त्रितय मोक्षका पथ है ॥१५॥ जीवादिश्रद्धानं सम्यक्त्वं तेषामधिगमो ज्ञानं । रागादिपरिहरणं चरणं एष तु मोक्षपथः ।। १५५ ॥
मोक्षहेतुः किल सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि । तत्र सम्यग्दर्शनं तु जीवादिश्रद्धानस्वभा. वेन ज्ञानस्य भवनं । जोवादिज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं ज्ञानं । रागादिपरिहरणस्वभावेन
___प्राकतशब्द . जीवादीसदहण, सम्मत्त, त, अधिगम, णाण रायादीपरिहरण, चरण, एत, दु, मोखपह । प्राकृतधातु-परि-हर हरणे, सम्-अंच-पूजासंकोचनसंचयेषु, चर गती। प्रकृतिशब्द-जीवादिथद्वान, सम्यक्त्व, तत्, अधिगम, ज्ञान, रागादिपरिहरण, चरण, एतत्, तु, मोक्षपथ । मूलधातु--श्रदशुभकर्मप्रवर्तन करनेपर भी शुभकर्मको अनात्मस्वभाव जानकर उससे उपेक्षा कर शुभाशुभकर्म से हटकर अपने अन्त:प्रकाशमान ज्ञानस्वरूपमें रत होकर सहज संतुष्ट होनेका पौरुष करना ॥ १५४ ।।
___ अब उन जीवोंको परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण दिखलाते हैं--[जीवादिश्रद्धानं] जीवादिक पदार्थोंका श्रद्धान तो [सम्यक्त्वं] सम्यक्त्व है और तेषां उन जीवादि पदार्थोंका [अधिगमः] अधिगम [ज्ञानं ज्ञान है तथा [रागादिपरिहरण] रागादिकका त्याग [चरणं] चारित्र है [एष तु] सो यही [मोक्षपथः] मोक्षका मार्ग है।
तात्पर्य-निश्चयतः सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्रको एकता हो मोक्षमार्ग है ।
टीकार्थ---मोक्षका कारण निश्चयसे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है। उनमें जीवादि. पदार्थोंके यथार्थ श्रद्धान स्वभावसे ज्ञानका होना तो सम्यग्दर्शन है; जीवादिपदार्थोंके ज्ञानस्व. भावसे ज्ञानका होना सम्यग्ज्ञान है; तथा रामादिके त्याग स्वभावसे शानका होना सम्यकचारित्र है। इस कारण ज्ञान ही परमार्थरूपसे मोक्षका कारण है। भावार्थ-सम्यग्दर्शन, ज्ञान
और चारित्र ये तीनों ज्ञानके ही परिणमन हैं। प्रतः ज्ञान को हो मोक्षका कारण कहा है । ज्ञान अभेदविवक्षासे प्रात्मा ही है। . प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व , गाथामें बताया गया था कि पुण्यकर्मके पक्षपाती जन पुण्यकर्मको ही मोक्षहेतु समझकर पुण्यको ही चाहते हैं। इस विवरण पर यह जिज्ञासा हुई कि फिर मोक्षका हेतु क्या है ? इस जिज्ञासाका समाधान इस गाथामें किया है।
तथ्यप्रकाश-१- ज्ञान ही परमार्थभूत मोक्षका कारण है । २- मोक्षका कारण जो