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पुण्यपापाधिकार
२८५ कर्मानुभवगुरुलाघवप्रतिपत्तिमात्रसंतुष्ट चेतसः स्थूल लक्ष्यतया सकलं कर्मकांडमनुन्मूलयंतः स्वयमज्ञानादशुभकर्म केवलं बंधहेतुमध्यास्य च व्रतनियमशीलतपःप्रभृतिशुभकर्मबंधहेतुमप्यजानंतो मोक्षहेतुमभ्युपगच्छति ॥ १५४ ।। प्रथमा बहु० । जे ये-प्रथमा बहु० १ ते ते-प्र० बहु० । अण्णाऐण अज्ञानेन-तृतीया एक० । पुष्णं पुण्यं-द्वि० एक० । इच्छति इच्छन्ति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहु० क्रिया। संसारगमणहेर्दू संसारगमनहेतु-द्वितीया एक० । वि अपि-अव्यय । मोक्खहे मोक्षहेतु-द्वितीया एकवचन । अजाणता [अजानन्त:-प्रथमा बहुवचन कृदन्त ।। १५४ ।। नहीं जानते । वे अशुभकर्मको छोड़ अज्ञानसे व्रत, नियम, शीलतपरूप शुभकर्मको ही मोक्षका कारण मान शुभकर्मको ही अङ्गाकार करते हैं ।
प्रसंगविवरण-प्रवन्तरपूर्व गाथामें यह नियम बता दिया गया था कि ज्ञान मोक्षका हेतु है और अज्ञान बंधका हेतु है । पिर भी पुण्यकार्गो पक्षपाती :ोगोंको हमभाने के लिये इस गाथामें बताया गया है कि अज्ञानी जन पुण्यकर्मको मोक्षका हेतु मानकर मोक्षके लिये पुण्यकर्मको ही चाहते रहते हैं ।
तथ्यप्रकाश-(१) समस्त कर्मपक्षका क्षय होनेसे जिसमें निजस्वरूपका लाभ होता है वह मोक्ष है । (२) मोक्षका कारण समयसारभूत परमसमरसभावमय सामायिक है । (३) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रस्वभाव परमार्थभूत ज्ञानका सतत होना परमरसभाव है । (४) अज्ञानी जन मोक्षकी चाह करते हुए भी, सामायिकको प्रतिज्ञा करके भी कर्मपक्षका अतिक्रमण न कर पानेसे परमार्थ ज्ञानानुभवमात्र प्रात्मस्वभावरूप सामायिकको प्राप्त नहीं कर पाते । (५) प्रशानी जन मोटे-मोटे संक्लेश परिणाम निवृत्त होनेसे व साधारण विशुद्ध परिणाम होनेसे ही मैंने धर्म कर लिया ऐसा भाव करके संतुष्ट हो जाते हैं। (६) अज्ञानी जन प्रशुभकर्मको तो बंधका कारण समझकर व्रत नियमादि शुभकर्मोको बन्धका कारण न जानकर शुभकर्मोंका ही मोक्षका कारण मानते हैं । (७) अज्ञानी जन "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र. मय अभेद रत्नत्रय मोक्षका कारण है' यह नहीं मान पाते हैं। (८) परमार्थज्ञानस्वभावसे विमुख जीव मज्ञानसे पुण्यको मोक्षहेतु मानकर पुण्यकर्मको ही चाहते हैं।
सिद्धांत-(१) समस्त कर्मपक्षके क्षयसे उत्पष्ठ शुद्धात्मभावना कर्मनिर्जराका कारण है । (२) कर्मपक्षको भावना कर्मबन्धका कारण है।
दृष्टि-१- शुद्धभावनापेक्ष शुद्धद्रव्याथिकनय (२४व)। २- उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२४)।
प्रयोग---ज्ञानस्वभावस्थितिरूप धर्मपालनके उद्देश्यसे पापकर्माक्रमणसे बचनेके लिये