________________
२८४
समयसार अथ पुनरपि पुण्यकर्मपक्षपातिनः प्रतिबोधनायोपक्षिपति
परमवाहिरा जे ते अण्णाणेण पुण्णमिच्छंति । संसारगमणहेदु वि मोक्खहे अजाणता ॥१५४॥ परमार्थबाह्य जो हैं, वे नहिं मोक्षके हेतुको जाने ।
संसारभ्रमण कारण, पुण्यहि अज्ञानसे चाहे ॥१५४।। परमार्थबाह्या यै ते अज्ञानेन पुण्यमिच्छति । संसारगमनहेर्नु अपि मोक्षहेतुम जानतः ।। १५४ ।।
इह खलु केचिनिखिलकर्मपक्षक्षयसंभावितात्मलाभं मोक्षमभिलषंतोऽपि तद्धेतुभूतं सम्य. ग्दर्शनज्ञान चारित्रस्वभावपरमार्थभूतशानभवनमात्रमैकाग्यलक्षणं समयसारभूत सामायिक प्रतिज्ञायमाना: प्रतिनिवृतस्यूसतमसंक्लेशपरिणामकर्मतया वर्तमानस्थूलतमविशुद्धपरिणामकारणः
प्राकृतशब्द -परमट्ठवाहिर, ज, त, अण्णाण, पुष्ण, संसारगमणहेदु, वि, मोक्खहेतु । प्राकृतधातुजाण अवबोधने, मुंच त्यागे, इच्छ इच्छायां । प्रकृतिशम्व–परमार्थबाह्य, यत्, तत्, अज्ञान, पुण्य, संसारगमनहेतु, अपि, मोक्षहेतु, अपि, मोक्षहेतु, अजानत् । मूलधातु- ऋ गतौ जुहोत्यादि (अर्यते इति अर्थः) ज्ञा अवबोधने, पूत्र पवने क यादि, इषु इच्छायां तुदादि । पदविवरण-परमवाहिरा परमार्थबाह्या:
तात्पर्य-प्रशानियोंको मोक्षहेतुभूत अन्सस्तत्वदृष्टि नहीं मिली, प्रतः पुण्यको ही मोक्षका कारण समझकर सेवते हैं ।
टोकार्थ-इस लोकमें कई एक जीव समस्त कर्मके पक्षका क्षय होनेसे सम्भावित निजस्वरूपके लाभरूप मोक्षको चाहते हुए भी और उस मोक्षके कारणभूत सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्रस्वभाव परमार्थभूत शानके होनेमात्र एकाग्रतालक्षण समयसारभूत सामायिक चारित्रकी प्रतिज्ञा लेकर भी दुरंत कर्मके समूहके पार होनेकी असामर्थ्यसे परमार्थभूत ज्ञानके होनेमात्र जो सामायिक चारित्रस्वरूप प्रात्माका स्वभाव उसको न पाते हुए प्रत्यन्त स्थूल संक्लेश परिणामस्वरूप कर्मसे तो निवृत्त हुए हैं और प्रत्यन्त स्थूल विशुद्ध परिणामस्वरूप कर्म के द्वारा प्रवृत्ति करते हैं, वे कर्मके पनुभवको गुरुता और लघुताकी प्राप्तिमावसे ही संतुष्ट चित्त वाले हुए स्थूल लक्ष्यतारूप स्थूल अनुभवगोचर संक्लेशरूप कर्मकांडको तो छोड़ते हैं, परन्तु समस्त कर्मकांडको मूलसे नहीं उखाड़ते । सो वे स्वयं अपने प्रशानसे केवल प्रशुभकर्म को बंधका कारण मान व्रत, नियम, शील, तप आदिक शुभकर्म बंधके कारणको बंधका कारण नहीं जानते हुए उसको मोक्षका कारण अङ्गीकार करते हैं।
भावार्थ-कितने ही जीव प्रधिक संश्लेशपरिणामरूप कर्मको तो बंधका कारण जानकर छोड़ देते हैं और मोटो विशुद्धता परिणाम रूप कमसहित बर्तते हैं। वे बाहरी प्रवृत्तिको ही बंध-मोक्षका कारण जानते हैं तथा सकल फर्मोसे रहित प्रपने स्वरूपको मोक्षका कारण