________________
२८२
समयसार बधहेतुत्वाबालव्यपदेशेन प्रतिषिद्धत्वे सति तस्यैव मोक्षहेतुत्वात् ॥ १५२ ॥ । अअव्ययस्थितः, यः-प्र० ए० । करोति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । तपः-द्वितीया एक० । बत-द्वि० ए० । धारयति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एका० । तत् सर्व, बालतपः, वालवतं-द्वि० ए० । वदंतिवर्तमान लट् अन्य पुरुष बहु० । सर्वज्ञाः-प्रथमा बहुवचन ।। १५२ ॥
दृष्टि--१-- उपाधिसापेक्ष प्रशुद्ध द्रव्याथिकनय (५३) । २-- शुद्धनिश्चयनय (४६) ।
प्रयोग-परमार्थमें न ठहर सकने वाले जीवकी क्रियायें सब दुर्गतिके हेतुभून जानकर परमार्थ सहज ज्ञानस्वरूप में उपयुक्त होनेका पौरुष करना ।। १५२ ॥
___ अब ज्ञान और अज्ञान दोनोंको क्रमशः मोक्ष और बंधका हेतु निश्चित करते हैं.... वितनियमाद] व्रत और नियमोंको [धारयंतः] धारण करते हुए [तथा तथा [शीलानि च तपः कुर्वतः] शील और तपको करते हुए भी [ये] जो [परमार्थवाह्याः] परमार्थभूत ज्ञानस्वरूप प्रात्मासे बाह्य हैं [ते] वे [निर्वाणं] मोक्षको [न] नहीं [विति] पाते ।
तात्पर्य सहज ज्ञानस्वभावमय अन्तस्तत्त्वसे अपरिचित जन कैसा भी ब्रत नियम तप धारण करें तो भी बे मोक्षको नहीं पाते हैं ।
टीकार्थ----ज्ञान ही मोक्षका हेतु है, क्योंकि शानका प्रभाव होनेपर स्वयं अज्ञानरूप हुए अज्ञानियोंके अन्तरङ्गमें व्रत, नियम, शील, तप आदि शुभकर्मका सद्भाव होनेपर भी मोक्ष का अभाव है। अज्ञान ही बंधका हेतु है, क्योंकि प्रज्ञानका प्रभाव होनेपर स्वयं ज्ञानरूप हुए ज्ञानियोंके बाह्य व्रत, नियम, शील, तप प्रादि शुभकर्मका असद्भाव होनेपर भी मोक्षका सद्भाव है । भावार्थ-ज्ञान होनेपर ज्ञानीके व्रत नियम शील तपोल्प शुभकर्म बाह्यमें विशेष न होने पर भी मोक्ष होता है । और अज्ञानोके बहुत अधिक बाह्म तप व्रत-नियमकी प्रवृत्ति हो तो भी उनको मोक्ष नहीं है। ... इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं-यवेत इत्यादि । अर्थ-जो यह शानस्वरूप
आत्मा ध्रुव और निश्चल ज्ञानस्वरूप प्रा शोभायमान होता है, तब ही यह मोक्षका कारण है, क्योंकि प्राप स्वयमेव मोक्षस्वरूप है और इसके सिवाय जो अन्य है वह बन्धका कारण है, क्योंकि वह स्वयमेव बन्धस्वरूप है । इस कारण ज्ञानस्वरूप अपना होना ही अनुभूति है, इस प्रकार निश्चयसे बन्धमोक्षके हेतुका विधान किया है । भावार्थ-शानात्मक आत्मपदार्थका ज्ञानात्मकपनेसे प्रवर्तना ही मोक्षका हेतु है ।
प्रसंगविवरण-मनन्तरपूर्व गाथाद्वयमें ज्ञानको मोक्षहेतुता व प्रज्ञानकी बंधहेतुताका संकेत दिया गया था। अब उसी तथ्यका एक हो इस गाथामें नियमरूप वर्णन किया गया है।
तथ्यप्रकाश-(१) ज्ञानशून्य अज्ञानीजन लगनसे व्रतादि कर शुभभाव करें तो भी ज्ञान