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पुण्यपापाधिकार प्रथोमयं कर्माविशेषेण बंधहेतु साधयति----
सौवण्णिायं पि णियल बंधदि कालायसं पि जह पुरिसं । बंधदि एवं जीवं सुहमसुहं वा कदं कम्मं ॥१४६॥
जैसे सुवर्ण प्रथया, लोहसंफल है जीवको बांये।
स्यों कृत फर्म अशुम या, शुभ हो सब जीवको बांधे ॥१४६॥ सौवर्णिकमपि निगल बध्नाति कालायसमपि च यथा पुरुषं । बध्नात्येवं जीवं शुभमशुभं वा कृतं कर्म ।
। प्राकृत शाब्द--- सौवष्णिय, वि, णियल, कालायस, वि, जह, पुरिस, एवं, जीव, सुह, असुह, वा, कद, कम्म । प्राकृत धातु - बन्ध बन्धने, जीव प्राणाधारणे, सोभ दीप्तौ, करस करणे । प्रकृतिशब्द- सौवणिक, अपि, निगल, कालायस, अपि, यथा, पुरुष, एवं, जीव, शुभ, अशुभ, वा, कृत, कर्म । मूलधातुःवर्ण क्रिया विस्तारगुणवचनेषु चुरादि, नि-गल अदने भ्वादि, बन्ध बन्धने कयादि, पुर अग्रगमने तुदादि, कारणसमयसारके अभिमुख रहनेका पौरुष करना ।। १४५ ॥
____ अब प्रागे शुभ अशुभ दोनों कर्मोको ही प्रविशेषतासे बंधके कारण साधते हैं[यया] जैसे [कालायसं निगलं] लोहेको बेड़ी [पुरुषं बध्नाति] पुरुषको बांधती है [अपि] और [सौरिणकं] सुवर्णकी बेड़ी [अपि] भी पुरुषको बांधती है [एवं] इसी प्रकार [शुभं वा अशुभं] शुभ तथा अशुभ [कृतं कर्म] किया हुआ कर्म [जीवं] जीवको [अध्नाति] बांधता ही है।
तात्पर्य -- पुण्य व फाप दोनों ही कर्म जीवके लिये बन्धन ही हैं।
टीकार्थ---शुभ और अशुभ कर्म प्रविशेषरूपसे हो प्रातमाको बांधते हैं, क्योंकि दोनोंमें ही बंधरूपपनेकी अविशेषता है जैसे कि सूवर्णकी बेड़ी और लोहेको बेड़ी में बंधकी अपेक्षा भेद नहीं है। भावार्थ--जैसे किसी कैदीको लोहेकी बेड़ोसे बांधा हो, किसीको सोनेकी वेडीसे बांधा हो बन्धन के क्लेशमें दोनों हैं, ऐसे ही किसीके चाहे पुण्यबन्ध हो, चाहे पापबन्ध हो सांसारिक क्लेशके बन्धनमें दोनों हैं, अतः पुण्य-पाप दोनों बन्धन हैं।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि लोक कहते हैं कि प्रशुभकर्म तो कुशोल है और शुभकर्म सुशील है, किन्तु वह कर्म सुशील कसा कि जो संसारमें प्रवेश करावे याने शुभ अशुभ दोनों ही कर्म कुशील हैं । उसी कुशीलताको बतानेके लिये इस गाषा में बताया है कि शुभ अशुभ दोनों ही कर्म अविशेषतासे बन्धनके ही कारण हैं।
तध्यप्रकाश-१-- चाहे किसीके पैरमें सोनेकी बेड़ी पड़ी हो, बन्धन दोनोंका एकसमान है। - चाहे किसीके कृतकर्म शुभ हों, चाहे किसीके कृतकर्म अशुभ हों दोनों ही कर्म जीवके लिये बन्धन ही हैं । ३- जो पुरुष भोगाकांक्षासे रूप सौभाग्य इन्द्रादि पदके लाभको