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कर्तृकर्माधिकार
२४६ रूपेण ज्ञाने स्वदमानोऽसंयमोदयः कलुषोपयोगरूपेण ज्ञाने स्वदमानः कषायोदयः शुभाशुभ प्रवृसिनिवृत्तिव्यापाररूपेण ज्ञाने स्वदमानो योगोदयः । अथैतेषु पौद्गलिकेषु मिथ्यात्वाद्युदयेषु हेतुभूतेषु यत्पुद्गलद्रव्यं कर्मवर्गणागतं ज्ञानावरणादिभावरष्टधा स्वयमेद परिणमते तत्खलु कर्मवर्गणागतं जीवनिबद्धं यदा स्यात्तदा जीवः स्वयमेवाज्ञानावरात्मनोरेकट्वाध्यासेनाज्ञानमयानां तत्त्वाश्रद्धानादीनां स्वस्य परिणामभावानां हेतुर्भवति ॥ १३२-१३६ ॥ भवेत्-विधि लिङ अन्य परुष एक क्रिया । अविरमणं, यः-प्रथमा एक०। त-अव्यय । कलुषोपयोग:प्र० ए० । जीवानां-षष्ठी बह० । सः, कषायोदयः-प्र० ए०। सं-द्वितीया एकवचन । जानीहि-आज्ञायां लोट् मध्यम पुरुष एक० 1 योगोदर्य-द्वितीया एकवचन कर्मकारक । य:-प्रथमा एकवचन । जीवाना-षष्ठी बहु । तु-अव्यय । चेष्टोत्साहः-प्रथमा एक० । शोभन:, अशोभन:--प्र० ए० । वा-अव्यय । कर्तव्यः-कृदंत प्रथमा एक० क्रिया । विरतिभाव:-प्रथमा एक० । वा--अव्यय । एतेषु-सप्तमी बहु० । हेतुभूतेषु-सप्तमी बहु० । कार्मणवर्गणागतं, यत्-प्रथमा एक० । तु-अव्यय । परिणमते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । अष्टविध-क्रियाविशेषणं यथा स्यात्तथा । ज्ञानावरणादिभाव:-तृतीया बहुः । तत्-प्र० ए० । स्खलुअव्यय । जीवनिबद्धं, कार्मणवर्गणमा ए माण | अति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० । हेतुः, जीव:-प्र० ए० । परिणामभावाना-षष्ठी बहुवचन ॥ १३२-१३६ ।।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथायुगल में बताया गया था कि प्रशानमयभावसे प्रज्ञानभयभाव होते हैं । अब इसी तथ्यका विशेषतासे वर्णन इस गाथापञ्चकमें किया गया है।
तथ्यप्रकाश-१-जीवोंको जो तस्वकी उपलब्धि नहीं हो रही है वह प्रज्ञानके उदय का प्रतिफल है । २- जीवोंको जो यथार्थ श्रद्धान नहीं हो रहा है वह मिथ्यात्वके उदयका प्रतिफल है । ३- जीवोंको जो पापोंसे विरति नहीं हो रही है वह प्रसयमके उदयका प्रतिफल है । ४- जीवोंको जो चेष्टामें उत्साह हो रहा है वह योगके उदयका प्रतिफल है। ५- इन द्रव्यप्रत्ययोंका निमित्त पाकर कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य ज्ञानावरणादि पाठ प्रकाररूप परिगम जाता है । ६- वह बद्ध कर्म जब जीवनिबद्ध याने उदयमें प्राकर प्रतिफलित होता है तब यह प्रशानी जीव प्रशानमय परिणामोंका हेतु होता है । ७- उदयागत द्रव्यप्रत्यय (कर्म) जीवविभावका तथा नवीन कर्मत्वका दोनोंका निमित्त है । - जीवविभाष द्रव्यप्रत्ययोंके निमितत्वका निमित्त है।
सिद्धान्त-१- उदित ध्यप्रत्ययका निमित्त पाकर नवीन कार्मासवर्गणामों में कर्मत्व पाता है । २- जीवविभाव परिणामोंका निमित्त पाकर प्रध्यप्रत्यय नवीन कोके मासवका निमित्त हो जाता है।
दृष्टि--१, २- उपाधिसापेक्ष प्रशुद्धद्रव्याथिकानय (२४) ।