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तथाहि-
समयसार
जं कुदि भावमादा कत्ता सो होदि तस्स कम्मस्स | गाणिस्स स गाणमय अण्णामी अगाणिस्स ।। १२६ ॥
आत्मा जो भाव करे, होता यह उस भावका कर्ता । ज्ञानमय भाव बुधका प्रज्ञानमय हि अबुधका है ॥ १२६ ॥
यं करोति भावमात्मा कर्ता स भवति तस्य कर्मणः । ज्ञानितः स ज्ञानमयोऽज्ञानमयोऽज्ञानिनः ।। १२६ ।। एवममात्मा स्वयमेव परिणामस्वभावोपि यमेव भावमात्मनः करोति तस्यैव कर्मतामापद्यमानस्य कर्तृत्वमापचेत । स तु ज्ञानिनः सम्यकूपर विवेकेनात्यंतोदित विविक्तात्मख्या
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नामसंज्ञ – ज, भाव, अत्त, अत्त, कतार, त, त कम्म, णाणि त. पाणमअ, अण्णाणमअ, अणाणि । धातुसंज्ञ-कुण करणे, हो सत्तायां । प्रकृतिशब्द-यत्. भाव, आत्मन् कर्तुं तत् तत् कर्मन, ज्ञानिनु, तत् ज्ञानमय, अज्ञानमय, अज्ञानिन् । मूलधातु- डुकृन्न करणे, थत सातत्यगमने सत्तायां ज्ञा अवबोधने । पदविवरण ---- द्वितीया एकवचन । करोति- वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन । भावं द्वि० एक०
क्रोधादिकर्म जीव परिणामको करता नहीं, प्रतः कायरताका कोई प्रसंग नहीं ऐसा जानकर अपने ग्रविकार सहज ज्ञानमात्र स्वरूपको निरखकर निजस्वरूपमें ही दृष्टि रखनेका पौरुष करना । ।। १२१-१२५ ।
अब उक्त अर्थको लेकर भावोंका बिशेषकर कर्ता कहते हैं: - [ श्रात्मा] आत्मा [ यं भri] fre भावnt [करोति ] करता है [तस्य कर्मणः ] उस भावरूप कर्मका [सः ] वह [कर्ता ] कर्ता [भवति ] होता है । वहाँ [ज्ञानिनः ] ज्ञानीके तो [सः ] वह भाव [ ज्ञानमय: ] ज्ञानमय है और [ प्रज्ञानिनः ] अज्ञानीके [ अज्ञानमयः ] अज्ञानमय है ।
टीकार्थ - - इस प्रकार यह श्रात्मा स्वयमेव परिणमनस्वभाव वाला होनेपर भो जिस भावको अपने करता है, कर्मत्वको प्राप्त हुए उस भावका ही कर्तापना प्राप्त होता है । सो वह भाव ज्ञानका ज्ञानमय ही है, क्योंकि उसको अच्छी प्रकारसे स्व-परका भेदज्ञान हो गया है, जिससे सब परद्रव्य भावोंसे भिन्न आत्माकी ख्याति प्रत्यन्त उदित हो गई है | परंतु अज्ञानी के प्रज्ञानमय भाव ही है, क्योंकि उसके भली-भाँति स्वपरके भेदज्ञानका प्रभाव होनेसे भिन्न आत्माकी ख्याति अत्यंत प्रस्त हो गई है । भावार्थ- ज्ञानीके तो अपना परका भेदज्ञान हो गया है इसलिये ज्ञानीके तो अपने ज्ञानमय भावका ही कर्तृस्व है, किन्तु अज्ञानीके अपना पर का भेदज्ञान नहीं है इस कारण अज्ञानमय भावका ही कर्तृत्व है ।
प्रसंगविवरण - अनन्तरपूर्व गाथापंचक में जीवको परिणामी सिद्ध करते हुए प्रसिद्ध किया था कि जीव अपने जिस भावको करता है उसीका कर्ता होता है । सो उसी स्वकर्तृत्व