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कर्तृ कर्माधिकार
२३३ भावेन परिणामयेत् ? न तावत्तत्स्वयमपरिणममानं परेण परिणामयितुं पार्येत । न हि स्वतोऽसती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्यते । स्वयं परिणाममानं तु न परं परिणमयितारमपेक्षेत । न हि वस्तुशक्तयः परमपेक्षते । ततः पगलद्रव्यं परिणामस्वभावं स्वयमेवास्तु । तथा सति कलशपरिणता मृत्तिका स्वयं कलश इव जडस्वभाबं ज्ञानावरणादिकमेपरिणतं तदेव स्वयं ज्ञानावरएक क्रिया । कर्मभावेन-तृतीया एक० । यदि-अन्यय । पुद्गलद्रव्यं-प्रथमा एक० । इद-प्र० ए० । अपरिणामि-प्र०० एक० नपंसकलिङ्ग। तदा-अध्यय। भवति-वर्तमान लद अन्य पुरुष एकवचन। कार्माणवर्गणासु-सप्तमी वहु० । च-अव्यय । अपरिणममानासु-सप्तमी बहु०। कर्मभावेन-तृतीया एक० । संसारस्य-षष्ठी एक० । अभाव:-प्र० ए० । प्रसजति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । सांख्यसमय:प्र० ए० 1 वा-अव्यय । जीवः-प्र० ए० । परिणामयति-वर्तमाम लट् अन्य पुरुष एक. णित किया। पुद्गलद्रव्याणि-द्वितीया एक ० 1 कर्मभावेन-तृ० ए० १ तानि-द्वि० बहु० । अपरिणममानानि-द्वि० ए० । कथंअव्यय । तु-अव्यय । परिणामप्रति-वर्तमान अन्य ० एक० । चेतयिता-प्र० ए० । परिणमते-वर्तमान लट् अपने जिस भावको करता है, उसका वह पुद्गलद्रव्य ही कर्ता है। भावार्थ-सब द्रव्योंका परिणाम स्वभावतः सिद्ध है, इसलिये प्रत्येक द्रव्य अपने भावका पाप ही कर्ता है ! अतः पुद्गल भी जिस भावको अपने में करता है, उसका वही कर्ता है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथात्रयमें यह निर्णय दिया गया था कि जीव और द्रव्यप्रत्यय ये भिन्न भिन्न हैं इनमें एकत्व नहीं । सो इसकी पुष्टि तब ही हो सकती है जब यह सिद्ध हो कि जीव अपने में अपने परिणमनेका स्वभाव रखता है और प्रजीव कर्म पुद्गलद्रव्य अपनेके खुदमें परिणमनेका स्वभाव रखता है। इन दो निर्णयोंमें प्रथम पुद्गलद्रव्यका परिणाम स्वभावत्व इन पाँच माथानोंमें सिद्ध किया है।
तथ्यप्रकाश--१- पुद्गलद्रव्यको जीवमें स्वयं बद्ध व कर्मभावसे स्वयं परिणत न माननेपर पुद्गलद्रव्य अपरिणामि बन बैठेगा । २- यदि पुद्गलद्रव्यकर्मको अपरिणामी माना जायगा तो संसारके प्रभावका प्रसंग हो जायगा । ३- कर्मरूपसे प्रपरिणत पुद्गलद्रव्यको जीव परिणमा देगा ऐसा यों नहीं हो सकता कि जो परिणम न सके उसे निमित्तरूपसे भी कोई परिणमा नहीं सकता। ४- यदि स्वयं परिणामते पुद्गलकमको जीव परिणमा देगा यह माना जाय तो जब पुद्गल परिणम रहा तो इसमें दूसरेकी अपेक्षा नहीं, दूसरा निमित्तमात्र हो होता । ५- पुद्गलद्रव्य स्वयं परिणामस्वभाव है वह ज्ञानावरणादि कर्मरूप हो जाता है । ६- निमित्तनैमित्तिकभाव व वस्तुस्वातंत्र्य इन दोनोंका एक साथ होने में विरोध नहीं है।
सिद्धान्त-१-पुद्गलद्रव्य कर्मरूपसे अकेला परिणमता है दूसरेको लेकर नहीं । २जीवपरिणाम व कर्मपरिणामका परस्पर निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है, कर्तृकर्मत्वसंबंध नहीं।
दृष्टि --- १-प्रशुद्धनिश्चयनय (४७) । २-उपाधिसरपेक्ष प्रसुद्ध द्रव्याथिकनय (२४) ।