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समयसार
यदि यह पुद्गल वस्तु स्वयं हि परिणमे कर्मभावोंसे । सो जीव परिणामाता, पुद्गलको कर्म यह मिथ्या ॥ ११६ ॥ कर्मरूप परिरणत हो, पुद्गल ही कर्मरूप होता है ।
सो वह पुद्गल वस्तू ज्ञानावरणादिपरिणत है ॥ १२० ॥
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जीवे न स्वयं बद्धं न स्वयं परिणमते कर्मभावेन । यदि पुद्गलद्रव्यमिदमपरिणामि तदा भवति ।। ११६ ।। कार्मणवर्गेणासु चापरिणममानासु कर्मभावेन । संसारस्याभाव: प्रसज्यते सांख्यसमयो वा ।। ११७ ।। जीव: परिणामयति पुद्गलद्रव्याणि कर्मभावेन । तानि स्त्रयमपरिणममानानि कथं नु परिणामयति चेतयिता । अथ स्वयमेव हि परिणमते कर्मभावेन पुद्गलद्रव्यं । जीवः परिणामयति कर्म कर्मत्वमिति मिथ्या ।। ११६ ।। नियमात्कर्मपरिणतं कर्म चैव भवति पुद्गलद्रव्यं । तथा तद्ज्ञानावरणादिपरिणतं जानीत तच्चैव ॥ १२० ॥३ यदि पुद्गलद्रव्यं जीवे स्वयमबद्ध सत्कर्मभावेन स्वयमेव न परिरणमेत तदा तदपरिणाम्येव स्यात् । तथा सति संसाराभाव: 1 अथ जीव: पुद्गलद्रव्यं कर्मभावेन परिणामयति ततो न संसाराभावः इति तर्कः ? कि स्वयमपरिणममानं परिणममानं वा जीवः पुद्गलद्रव्यं कर्मभातुसंज्ञ-बंध बंधने, परि-नमनत्रीभावे हो सत्तायां, प-सज्ज समवाये, मुण जाने । प्रकृतिशब्द - जीव, न, स्वयं बद्ध, न, स्वयं, कर्मभाव, वदि, गुद्गलद्रव्य, इदं अपरिणामिन्, तदा कार्माणवर्गणा, च. अपरिमाना, कर्मभाव, संसार, अभाव, सांख्यसमय, वा, जीव, पुद्गलद्रव्य, कर्मभाव, तत् स्वयं अपरिणममान, कथं, नु, चेतयितृ । मूलघातु-जीव प्राणधारणे, बन्ध बन्धने, परिणम प्रहृत्वे, पूरी आप्यायने, गल स्रवणे, द्रु गतौ भू सत्तायां सम्-सृ गतौ भ्वादि । पदविवरण - जीवे सप्तमी एकवचन | न अव्यय | स्वयं-अव्यय । बद्धं प्रथमा एक० कृदन्त । न-अव्यय । स्वयं-अव्यय । परिणमते वर्तमान लट् अन्य पुरुष है, इसलिये संसारका प्रभाव नहीं हो सकता, उसके समाधानमें प्रश्न है कि यदि जीव पुद्गलको परिणमित कराता है तो वह स्वयं अपरिमितको परिमित कराता है या स्वयं परिण मितको परिणमित कराता है ? यदि इनमें से पहला पक्ष लिया जाय तो स्वयं श्रपरिमितको कोई नहीं परिणमा सुकता, क्योंकि स्वयं अपरिमितको परके द्वारा परिणमानेकी सामर्थ्य नहीं होती | स्वतः शक्ति जिसमें नहीं होती, वह परके द्वारा भी नहीं पा सकती । यदि स्वयं परिमित पुद्गलद्रव्यको जीव कर्मभावसे परिमाता है, ऐसा दूसरा पक्ष लिया जाय तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि अपने ग्राप परिणमित हुए को ग्रन्य परिणामानेवालेको आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि वस्तुको शक्ति परकी अपेक्षा नहीं करती। इसलिये पुद्गलद्रव्य परिणामस्वभाव स्वयमेत्र होवे | ऐसा होनेपर जैसे कलशरूप परिणत हुई मिट्टी अपने आप कलश हो है, उसी भाँति जडस्वभाव ज्ञानावर आदि कर्मरूप परिणत हुमा पुद्गलद्रव्य हो भाप ज्ञानावरण प्रादि कर्म ही है । इस प्रकार पुद्गल द्रव्यका परिणामस्वभावपना सिद्ध हुआ ।
अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं-स्थिते इत्यादि । अर्थ - इस प्रकार पुगल द्रव्यको परिणमनशक्ति स्वभावभूत निर्विघ्न सिद्ध हुई । उसके सिद्ध होनेपर पुद्गलद्रव्य