________________
२२८
समयसार न च जीवप्रत्यययोरेकर
जह जीवस्स अणण्णुवोगो कोहो वि तह जदि अणण्णो। जीवस्साजीवस्स य एवमणण्यातमावण्णं ॥ ११३ ॥ एवमिह जो दु जीवो सो चेव दुणियमदोतहाजीवो। अयमेयत्ते दोसों पच्चयणोकम्मकम्माणं ॥ ११४ ॥ अह दे अण्णो कोहो अण्णुव श्रोगप्पगो हवदि चेदा । जह कोहो तह पञ्चय कम्मं शोकम्ममवि अणणं ॥ ११५ ॥
ज्यौ आत्मासे तन्मय, उपयोग तथैव ऋवेष हो तन्मय । जीव व अजीयको फिर, अभिन्नता प्राप्त होगी ॥११३॥ इस तरह जीव जो है, वही नियमसे अजीव होवेगा । एकत्त्व दोष यह ही, आस्त्रय नोकर्म कर्मोमें ॥११४॥ उपयोगमयी आत्मा, यदि है अन्य हि व अन्य क्रोधादिक । कर्म नोकर्म प्रत्यय, तो तद्वत् मिन्न आत्मासे ॥११५॥
न्य उपयोग के भोग तथ सान्या; : माजी परमानन्यत्वमापन्नं ॥ ११३।। एवमिह यस्तु जीवः स चैव तु नियमतस्तथाजीवः । अयमेकत्वे दोष: प्रत्ययनोकर्मकर्मणां ।। ११४ ॥ अथ ते अन्यः क्रोधोऽन्यः उपयोगात्मको भवति चेतयिता । यथा क्रोधस्तथा प्रत्ययाः कर्म नोकर्माप्यन्यत् ।
यदि यथा जीवस्य तन्मयत्वाज्जीवादनन्य उपयोगस्तथा जडः क्रोधोप्यनन्य एवेति प्रतिपत्तिस्तदा चिद्रूपजडयोरनन्यस्वाज्जीवस्योपयोगमयत्ववज्जडक्रोधमयत्वापत्तिः । तथा सति
नामसंज्ञ-जह, जीव, अणण्णुवओग, कोह, बि, तह, जाद, अण्ण, जीव, अजीव, य, अणण्णत्त, आवष्ण, एवं, इह, जो, दु, जीव, त, च, एव, दु, णियमदो, तह, अजीव, इत, एयत्त. दोस, पच्चयणोकम्मकम्म, अह, तुम्ह, अण्ण, कोह, अवओगपग्ग, चेद, जह, कोह, तह, पच्चय, कम्म, गोकम्म, अवि, अण्ण ! धातुसंज- आ-वाण घटनायां, हर सत्तायां, चेत करणावबोधनयोः । प्रकृतिशब-यथा, जीव, अनन्य, जीव, अजीव, च, एवं, अन्यत्व, आपन्न, एवं, इह, यत्, तु, जीव, तत्, च, एव, तु, नियमतः, तथा, अजीव, [प्रथ] अब इस दोषके भयसे [ते] तेरे मतमें [क्रोधः] क्रोध [अन्यः] अन्य है और [उपयोगात्मकः] उपयोगस्वरूप [चेतयिता] प्रात्मा (अन्यः) अन्य (भवति) है तो (यथा क्रोधः) जैसे क्रोध (अन्यः) आत्मासे अभ्य है (तथा) उसी प्रकार (प्रत्ययाः) प्रत्यय (कर्म) कर्म (नोकर्म अपि) और नोकर्म ये भी (अन्यत्) प्रात्मासे अन्य ही हैं, ऐसा निश्चय करो ।
तात्पर्य-क्रोध, प्रत्यय व शरीर ये सभी प्रात्मासे भिन्न हैं । टीकार्य -- जैसे जीवके साथ तन्मयतासे जीवसे उपयोग अनन्य (एकरूप) है, उसी