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________________ - - २२६ समयसार केवला एव यदि व्याप्यव्यापकभावेन किंचनापि पुद्गलकमं कुर्यस्तदा कुयु रेव कि जीवस्यात्रापतितं । प्रथापं तर्कः पुद्गलमयमिथ्यात्वादोन वेदयमानो जीवः स्वयमेव मिथ्यादृष्टिभूत्वा पुद्गलकम करोति स किलाविवेको यतो खल्वात्मा भाच्यभावकभावाभावात् पुद्गलद्रव्यमयमिथ्यास्वादिवेदकोपि कथं पुनः पुद्गल कर्मणः कर्ता नाम । अर्थतदायातं यत: पुद्गलद्रव्यमयानां चतुर्णा एतत्, कर्मन, प्रत्यय, यत्, तत्, जीव, अकर्त, गुण, च, कर्मन् । मूलधातु-सम्-अण शब्दार्थे भ्वादि, प्राणने दिवादि, प्रति-अप गतौ भ्वादि, युजिर योगे, बुध अवबोधने, चिती संज्ञाने, पूरी आप्यायने, गल स्रवणे, विद चेतनाख्याननिवासेषु चुरादि । पदविवरण सामान्यप्रत्ययाः-प्रथमा बहु० । खलु-अध्यय । चत्वारःप्रथमा बहुवचन । भण्यन्ते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहुवचन कर्मवाच्ये क्रिया । बन्धकर्तार:-प्रथमा बहु० । मिथ्यात्वं-प्रथमा एक० । अविरमणं-प्रथमा एकः । कषाययोगो-प्रथमा द्विवचन । च-अव्यय । बोद्धव्या:-- प्रथमा बहुवचन कृदन्त क्रिया । तेषां-षष्ठी बहु । पुन:-अव्यय । अपि-अव्यय । च-अव्यय । अयं--प्रथमा एक० । भणित:-प्रथमा एकवचन कृदन्त कर्मवाच्य क्रिया। भेदः-प्रथमा एक० । तु-अव्यय । त्रयोदशविकल्प:-प्रथमा एक० । मिथ्यादृष्ट्यादि:-प्र० ए०। यावत्-अध्यय । सयोगिनः--षष्ठी एक० । चरमान्त:महीं अथवा यहां यह तर्क है कि पुद्गलमय मिध्यात्वादिका वेदन करता हुअा जीव स्वयं ही मिथ्यादृष्टि होकर पुद्गल कर्मको करता है। यह तर्क बिल्कुल प्रज्ञान है, क्योंकि मात्मा भाव्यभावक भावके प्रभावसे मिथ्यात्वादि पुद्गलकर्मीका भोक्ता भी निश्चयसे नहीं है तो पुद्गलकमका कर्ता कैसे हो सकता है ? इसलिये यह सिद्ध हुआ कि पुद्गल द्रव्यमय सामान्य पार प्रत्यय व उनके विशेष भेदरूप तेरह प्रत्यय जो कि गुण शब्दसे कहे गये हैं वे हो केवल कोको करते हैं। इस कारण जीव पुद्गलकमौका प्रकर्ता है और वे गुरणस्थान ही उनके कर्ता हैं. दयोंकि वे गुण पुद्गलद्रव्यमय ही हैं। इससे पुद्गलकमका पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है यह सिद्ध हुआ। मावार्थ-'अन्य द्रध्यका अन्य द्रव्य कर्ता कभी नहीं होता' इस न्यायसे प्रात्मद्रव्य पुद्गलद्रव्य कर्मका कर्ता नहीं है, बंधके कर्ता लो योगकषायादिकसे उत्पन्न हुए गुणस्थान हैं । वे वास्तवमें प्रचेतन पुद्गलमय हैं । इसलिए वे पुद्गलकमके कर्ता हैं, जीवको कर्ता मानना प्रज्ञान है। प्रसंगविवरण-मनन्तरपूर्व गाथामें कहा गया था कि जीव कर्मद्रव्यगुणोत्पादक है यह उपचारसे कहा गया, निश्चयनः जीव पुद्गलकर्मको कुछ नहीं करता। इस विवरणपर जिज्ञासा होती है कि फिर पुगलकर्मको करता कौन है ? इसके समाधान में ये ४ गाचार्य पाई है। तध्यप्रकाश-(१) पुद्गलकमका पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है । (२) मिध्यात्व, प्रविरति, कषाय व योग-~~ये ४ पुद्गलकर्मके प्रकार हैं, अतः ये चार पुद्गलकर्मके कर्ता हैं । (३) मिथ्यात्वका भेद प्रथम गुणस्थान, अधिरतिके भेद १ से ५ गुणस्थान, कषायके भेद १ से १०
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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