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________________ समयसार कथं इति चेत्--- जोधेहि कदे जुदे रापण कदंति जंपदे लोगो। तह ववहारेण कदं गाणावरणादि जीवेण ॥१०६॥ योद्धावि युद्ध करते, करता नृप युद्ध यह कहे जनता । व्यवहारसे किये स्यौं, ज्ञानावरगादि प्रात्माने ॥१०६।। योधः कृते युद्ध राज्ञा कृतमिति जल्पते लोकः । तथा व्यवहारेण कृतं ज्ञानावरणादि जीवेन ॥१०६।। यथा युद्धपरिणामेन स्वयं परिणममानैः योधैः कृते युद्धे युद्धपरिणामेन स्वयमपरिणममानस्य राज्ञो राज्ञा किल कृतं युद्धमित्युपचारो न तु परमार्थः । तथा ज्ञानावरणादिकर्मपरिणामेन स्वयं परिणममानेन पुद्गलद्रव्येण कृते ज्ञानावरणादिकर्मणि ज्ञानावरणादिकर्मपरिणामेन स्वयमपरिणममानस्यात्मनः किलात्मना कृतं ज्ञानाबरणादिकत्युपचारो न परमार्थः ।।१०।। नामसंज्ञ... जोध, कद, जुद्ध, राय, कद, इति, लोग. तह, बबहार, कद, गाणावरणादि. जीव । धातुसंज्ञ-- जुज्झ संप्रहारे, जप व्यक्तायां वाचि । प्रकृतिशव - योध, कृत, युद्ध, राजन, कृत, इति, लोक, तथा, व्यवहार, कृत, ज्ञानावरणावि, जीव । मूलधातु-युध संप्रहारे दिवादि, राज दीप्ती स्वादि, जल्प व्यक्तायां वाचि मानसे च भ्वादि, लोक दर्शने भ्वादि, लोक भाषार्थ चुरादि । पदविवरण ---यो]:-तृतीधा बहु० । कृते-सप्तमी एकवचन कुदन्न । युद्धे-सप्तमी एक०। राज्ञा-तृ० ए० । कृत-प्रथमा एक कृदन्त । इति-अव्यय । जल्पते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया। लोक:--प्रथमा एमा० । तथा-अव्यय । व्यवहारेण-त० ए० । कृत-प्रथमा एक० 1 ज्ञानाचरणादि-प्रथमा एक० । जीवेन-तृतीया एकत्रचन ॥१०॥ शिक्षा दिला सकता है। सिद्धान्त-(१) कार्यमें जो निमित्त हो उसे कार्यका कर्ता कहना उपचार है । दृष्टि-१- परकर्तृत्व अनुपचारित असद्भूतव्यवहार (१२६) ! प्रयोग-जीवने ज्ञानावरणादि कर्म किये, इस उपचारकथन में यह तथ्य निहार करके कि जीवके विकल्प व व्यापारका निमित्त पाकर यह सब कर्मबोझ बन गया सो प्रब निविल्प निष्क्रिय ज्ञायकस्वभावकी दृष्टि करना ताकि अपनेको परमविश्राम मिले और निकटकालमें सदाके लिये कर्ममुक्त होकर संसार-संकटसे, छुटकारा मिले ॥१०६।। ___ अब ऐसा निश्चय हुमा कि-[आत्मा] प्रात्मा [पुद्गलद्रव्यं] पुद्गलद्रध्यको [उत्पायति उत्पन्न करता है [च] पोर [करोति] करता है मध्नाति] बांधता है [परिणामयति] परिण मता है [१] तथा [गृह्णाति] ग्रहण करता है ऐसा [व्यवहारनयस्य व्यवहारनयका [वक्तव्यं] वचन है। तात्पर्य-प्रात्मा अपने भावको ही करता है, फिर निमित्तनैमित्तिक भाव दिखनेसे
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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