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कतृ कमाधिकार कल्पविज्ञानघनभ्रष्टानां विकरूपराए परेषामरिक विकासः । वार एव न तु परमार्थः ।।१०५॥ कर्म-प्रथमा एक० कर्मवाच्य कर्मकारक । भण्यते-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० कर्मवाच्ये क्रिया । उपचारमात्रेण-तृतीया एकवचन ॥१०॥ स्तित्वमें हैं, ऐसा निरखकर अपने ही स्वरूपमें रमणका पौरुष करना ।। १०५ ।।
वह उपचार कैसे है सो दृष्टांत द्वारा कहते हैं- योधः] योद्धापोंके द्वारा [युद्ध कृते] युद्ध किये जानेपर [लोकः] लोक [इति जल्पते] ऐसा कहते हैं कि [राज्ञा कृतं] राजाने युद्ध किया सो यह [व्यवहारेण] व्यवहारसे कहना है [तथा] उसी प्रकार [ज्ञानावरणावि ज्ञानाबरणादि कर्म [जीवेन कृतं] जीवके द्वारा किया गया, ऐसा कहना व्यवहारसे
टोकार्थ--जैसे युद्ध परिणामसे स्वयं परिणमन करने वाले योद्धानों द्वारा किए गए युद्धके होने पर युद्ध परिणामसे स्वयं नहीं परिणत हुए राजाको लोक कहते हैं कि युद्ध राजाने किया। यह कथन उपचार है, परमार्थ नहीं है। उसी प्रकार ज्ञानावरणादि कर्मपरिणामसे स्वयं परिणमन करने वाले पुद्गलद्रव्यके द्वारा किए गए ज्ञानावरणादि कर्मके होनेपर ज्ञानावरणादि कर्म परिणामसे स्वयं नहीं परिणमन करने वाले प्रात्माके सम्बन्धमें कहते हैं कि यह । ज्ञानाबरणादि कर्म प्रात्माके द्वारा किया गया, यह कथन उपचार है, परमार्थ नहीं है । भावार्थ-जैसे योद्धा युद्ध करे; वहाँ पर संबंधवश राजाने युद्ध किया, यह उपचारसे कही जाता है, वैसे पुद्गलकर्म स्वयं कर्मरूप परिणमता है, वहाँ निमित्तसम्बन्धवश पुद्गलकर्मको जीवने किया, ऐसा उपचारसे कहा जाता है ।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि जीवके द्वारा कर्म किया गया यह कथन उपचारमात्र है । अब इस गाथामें इसी विषयको उदाहरणपूर्वक स्पष्ट किया है ।
तथ्यप्रकाश-(१) युद्ध तो योद्धा ही कर रहे हैं, किन्तु जो युद्ध नहीं कर रहा ऐसे रागके प्रति उपचार किया जाता है कि राजाने युद्ध किया । (२) ज्ञानावरणादिकर्मपरिणाम से तो स्वयं पुद्गलद्रव्य हो परिणाम रहा है, किन्तु जो कर्मपरिणामसे नहीं परिणाम रहा, ऐसे जीवके प्रति उपचार किया जाता है कि जीवने ज्ञानावरणादि कर्म किये । (३) यह उपचार इस कारण परमार्थ नहीं कि एक द्रव्यको बाल दूसरे द्रव्यमें लगाई गई । (४) यह उपचार निमित्तनैमित्तिक भावकी याद दिलाकर निमित्तभूत विकल्प व व्यापार तथा नैमित्तिक कर्म. बन्धन दोनोंसे हटनेको शिक्षा दिला सकता है । (५) कर्मने जीवविकार किये यह उपचार भी निमित्तनैमित्तिक भावको याद दिलाकर निमित्तभूत कर्मसे व नैमित्तिक विभावसे हटनेकी