________________
२११
कर्तृकर्माधिकार जानो शानस्यैव कर्ता स्यात्ः--
जे पुग्गलदव्वाणं परिणामा होति णाणावरणा । ण करेदि ताणि श्रादा जो जाणदि सो हवदि ण णी ॥१०१॥
जो पुद्गल द्रव्योंके, ज्ञानावरणादि कर्म बनते हैं।
उनको न जोय करता, यो जो जाने वही ज्ञानी ३१०१॥ ये पुद्गलद्रव्याणां परिणामा भवंति शानावरणानि । न करोति तान्यात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी।
ये खलु पुद्गलद्रव्याणां परिणामा गोरसच्याप्तदधिदुग्धमधुराम्लपरिणामवत्पुद्गलद्रव्य व्याप्तत्वेन भवतो ज्ञानावरणामि भवंति तानि तटस्थगोरसाध्यक्ष इव न नाम करोति जानो किंतु यथा स गोरसाध्यक्षस्तद्दर्शनमात्मध्याप्तत्वेन प्रभवव्याप्य पश्यत्येव तथा पुद्गलद्रव्यपरिणामनिमित्तं ज्ञानमारमच्याप्यत्वेन प्रभवव्याप्य जानात्येव ज्ञानी ज्ञानस्यैव कर्ता स्यात् । एवमेव १
___ नामसंश-ज, पुग्गलदव्य, परिणाम, णाणावरण, ण, त, अन्न, ज, त, गाणि । घातुसंज्ञ- हो सत्तायां, कर करणे, जाण अवबोधने, हव सत्तायां । प्रातिपदिक- यत्, पुद्गलद्रव्य, परिणाम, झानावरण, न, तत्, आत्मन्, यत्, तत्, शानिन् । मूलपातु-पूरी आप्यायने, गल स्रवणे चुरादि, द्रु गती, परि-णम प्रत्ये, भू सत्तायां, शा अवबोधने, आ-वृन आवरणे चुरादि, डुकृञ् करणे, अत सातत्यगतौ । पदविवरणये-प्रथमा बहु० । पुदगलद्रव्याणां--षष्ठी बहु० । परिणामाः-प्रथमा बहु० । भवन्ति–वर्तमान लट् अन्य पुरुष ज्ञानी ज्ञानका हो कर्ता होता है। इसी प्रकार ज्ञानावरण पदके स्थानमें कर्मसूत्रके विभागकी स्थापनासे दर्शनावरण, वेदनोय, मोहनोय, प्रायु, नाम, गोत्र और अन्तराय इनके सात सूत्रोंसे और उनके साथ मोह, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रोत्र,
चक्षु, प्राण, रसन और स्पर्शन ये सोलह सूत्र व्याख्यानके योग्य हैं । तथा इसी रीतिसे अन्य __ भी विचार किये जाने योग्य हैं।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व माथामें बताया गया था कि प्रात्मा परद्रव्यात्मक परि. णामका न उपादानरूपसे कता है और न निमित्तरूपसे कर्ता है। इस विवरणपर जिज्ञासा हुई कि फिर मात्मा वास्तव में किसका कर्ता है इसका समाधान इस गाथामें किया है ।
तथ्यप्रकारा-१--पुद्गलस्कन्धों के ज्ञानावरगादिक परिणमन पुद्गलस्कंधों में व्याप्यरूप से होते हैं । २-उन ज्ञानावरणादिक कर्मपरिणामको प्रात्मा करता नहीं, किन्तु मात्र जानता है । ३-वह पुद्गलद्रव्यपरिणामविषयक ज्ञान प्रात्मामें व्याप्यरूपसे होता है, अतः ज्ञानी ज्ञान का ही कर्ता है।
सिद्धान्त---१-पुद्गलद्रव्यों के परिणाम ज्ञानावरणादिक पुद्गलद्रव्योंमें ही व्या हैं । २-पुद्गलद्रव्योंसे विविक्त होनेसे उनके परिणामका प्रात्मा कर्ता नहीं है ।