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________________ कर्तृकर्माधिकार २०६ निमित्तनमित्तकभावेनापि न कर्तास्ति जीवो गा करेदि घडं गोव पडं गेव सेसगे दव्ये। जोगुवयोगा उप्पादगा य तमि हबदि कत्ता ॥१०॥ न निमितरूपमें भी, प्रात्मा करता घटादि द्रव्योंको । योगोपयोग कारण, उनका ही जीय कर्ता है ॥१०॥ जीवो न करोति घटं नैव पट नैव शेषकानि द्रव्याणि । योगोपयोगावुत्पादकों च तयोर्भवति का ।।१०।। __ यत्किल घटादि क्रोधादि वा परद्रव्यात्मकं कर्म तदयमात्मा तन्मयत्वानुषंगाद व्यायव्यापकभावेन तावन्न करोति नित्यकर्तृत्वानुषंगानिमित्त नैमित्तिकभावेनापि न तत्कुर्यात् । अनि नामसंज्ञ--जीव, पण, घड, ण, एव, पड, सेसग, दव, जोगुवओग, उप्पादग, य, त, कत्तार । धातुसंझ---कर करणे, जव-उंज योगे, हब सत्तायां । प्रकृतिशब्द-जीव, न, घर, न, एव, पट. न, एव, शेषक, द्रव्य, योगोपयोग, उत्पादक, च, तत्, कर्तृ । मूलधातु-जीव प्राणधारणे, डुकृञ् करणे, घट संघाते, पट गती, शिष असर्वोपयोगे चुरादि, द्रु गती, मुजिर योगे, उत्-पद गती चुरादि दिवादि णिच् कृदन्त, भू सत्तायां । पदविवरण- जीव:--प्रथमा एक० । न-अव्यय । करोति--वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन । कहे जाते हैं । योग तो आत्माके प्रदेशोंका चलनरूप व्यापार है और उपयोग प्रात्माके चैतन्य का रागादि विकाररूप परिणाम है । सो कदाचित् प्रशानसे इन दोनोंको करनेसे इनका प्रात्मा को भी कर्ता कहा जावे, तो भी वह परद्रध्यस्वरूप कर्मका तो कर्ता कभी भी नहीं है। भावार्थ-प्रात्माके योग, उपयोग, घटादि तथा क्रोधादिकके निमित्त हैं, सो योग उपयोगको तो उनका निमित्तकर्ता कहा जा सकता है, परन्तु प्रात्माको उनका निमित्तकर्ता भी नहीं कहा जा सकता ! तथा प्रात्मा योग उपयोगका कर्ता संसार अवस्थामें प्रशानसे हैं । तात्पर्य यह है कि द्रव्यदृष्टिसे तो कोई द्रव्य अन्य किसी द्रव्यका कर्ता नहीं है, परन्तु पर्यायदृष्टि से किसी द्रव्यका पर्याय किसी समय किसी अन्य द्रव्यके पर्याय के लिये निमित्त होता है । इस अपेक्षासे अन्यके परिणाम अन्य के परिणामके निमित्तकर्ता कहे जाते हैं, परन्तु परमार्थसे द्रव्य अपने परिणामका कर्ता है, किसीके परिणामका अन्य द्रव्य कर्ता कभी हो ही नहीं सकता। प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रात्मा घट पट आदिको कर्म नोकर्म प्रादिको करता है यह जो व्यवहार है वह सत्यार्थ नहीं है क्योंकि प्रात्मा उपादान रूपसे किसी भी परद्रव्यको नहीं करता । अब इसी विषयमें इस गाधामें बताया है कि वास्तव में तो प्रात्मा घटादिक व क्रोधादिक पद्रव्यात्मक परिणामका निमित्तनमित्तिकभावसे भी कर्ता नहीं है, किन्तु ग्राः के योग उपयोग ही उनके निमित्तरूपसे कर्ता हैं। तथ्यप्रकाश-~~-१-यदि घटादिक व क्रोधादिक परद्रव्यपरिणामका प्रात्मा उपादानरूपसे
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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