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कर्तृ कर्माधिकार स न सन्
जदि सो परदव्वाणि य करिज्ज णियमेण तम्मयो छोज । जमा गण तम्मयो तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ॥६६
यदि वह परद्रव्योंको, करता तो तन्मयो हि हो जाता ।
च कि नहीं तन्मय ग्रह, इससे परफा नहीं कर्ता ॥६६ यदि स परद्रयाणि च कुर्यानियमेन तन्मयो भवेत् । यस्मान्न तन्मयस्तेन स ग तेषां भवति कर्ता ।
यदि खल्वयमात्मा परमात्मकं कर्म कुर्मदा नियाविण धिभावान्यथानुपपत्ते
नामसंज्ञ- जदि, न, परदव्य, य, णियम, तम्मअ, ज, ण, तम्म, त, त, ण, त, कतार । धातुसंश- कर करणे, हो मत्तायां, हब सत्तायां । प्रकृतिशग्द----यदि, तत्, परद्रव्य, च. नियम, तन्मय, यत, न, तन्मय, तत्, तत्, न, सत्, कहूँ । मूलधातु-त्रु गती, कृ करणे, भू सत्तायां। पदविवरण -- यदिअव्यय । स:-प्रथमा एकवचन । परद्रव्याणि-द्वितीया बहु० । च-अव्यय । कुर्यात्-विधि लिङ अन्य पुरुष मात्मा [परद्रव्यारिण] परद्रव्योंको [कुर्यात् ] करे [च] तो [नियमेन] नियमसे वह आत्मा उन परद्रव्योंसे [तन्मयः] तन्मय [भवेत् ] हो जाय [यस्मात] परन्तु [तन्मयः न] प्रात्मा तन्मय नहीं होता [तेन] इसी कारण [सः] वह [तेषां] उनका [कर्ता] कर्ता [न भवति] नहीं है।
__ तात्पर्य—मात्मा परद्रव्योंसे पृथक् अपनी सत्तामाश्रमें है, अतः वह परद्रव्योंका कर्ता कैसे हो सकता है ?
टीकार्थ- यदि वास्तव में यह अात्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे, तो परिणाम-परिणामभावको अन्यथा अप्राप्ति होनेसे नियमसे नन्मय हो जाय, किन्तु अन्य द्रव्यको अन्य द्रव्य में तन्मयता होनेपर अन्य द्रव्य के नाशकी आपत्तिका प्रसंग मानेसे तन्मय है ही नहीं । इसलिये व्याप्यव्यापकभावसे तो उस द्रव्यका कर्ता आत्मा नहीं है । भावार्थ-यदि प्रात्मा अन्य द्रव्य का कर्ता होवे, तो पृथक्-पृथक द्रव्य क्यों रहें ? फिर तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप हो जावेगा, यों अन्य व्यका नाश हो जायगा यह बड़ा दोष प्राता जैसा कि है ही नहीं । इसलिये अन्य द्रव्यका कर्ता अन्य द्रव्यको कहना सत्यार्थ नहीं है निश्चयसे तो यही है कि प्रात्मा मात्र अपने गुणों में ही परिणाम सकता है, अन्य के गुणोंमें नहीं ।
प्रसंगविवरण--अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रात्मा परद्रव्यको करता है यह कथन व्यवहारसे है । अब इसी विषयमें इस गाथामें कहा है कि ऐसा व्यवहारकथन सत्यार्थ नहीं है।
सध्यप्रकाश---(१) यदि प्रात्मा परद्रव्यको करे तो प्रात्मा परद्रव्यमय हो जायगा यह