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________________ २०७ कर्तृ कर्माधिकार स न सन् जदि सो परदव्वाणि य करिज्ज णियमेण तम्मयो छोज । जमा गण तम्मयो तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ॥६६ यदि वह परद्रव्योंको, करता तो तन्मयो हि हो जाता । च कि नहीं तन्मय ग्रह, इससे परफा नहीं कर्ता ॥६६ यदि स परद्रयाणि च कुर्यानियमेन तन्मयो भवेत् । यस्मान्न तन्मयस्तेन स ग तेषां भवति कर्ता । यदि खल्वयमात्मा परमात्मकं कर्म कुर्मदा नियाविण धिभावान्यथानुपपत्ते नामसंज्ञ- जदि, न, परदव्य, य, णियम, तम्मअ, ज, ण, तम्म, त, त, ण, त, कतार । धातुसंश- कर करणे, हो मत्तायां, हब सत्तायां । प्रकृतिशग्द----यदि, तत्, परद्रव्य, च. नियम, तन्मय, यत, न, तन्मय, तत्, तत्, न, सत्, कहूँ । मूलधातु-त्रु गती, कृ करणे, भू सत्तायां। पदविवरण -- यदिअव्यय । स:-प्रथमा एकवचन । परद्रव्याणि-द्वितीया बहु० । च-अव्यय । कुर्यात्-विधि लिङ अन्य पुरुष मात्मा [परद्रव्यारिण] परद्रव्योंको [कुर्यात् ] करे [च] तो [नियमेन] नियमसे वह आत्मा उन परद्रव्योंसे [तन्मयः] तन्मय [भवेत् ] हो जाय [यस्मात] परन्तु [तन्मयः न] प्रात्मा तन्मय नहीं होता [तेन] इसी कारण [सः] वह [तेषां] उनका [कर्ता] कर्ता [न भवति] नहीं है। __ तात्पर्य—मात्मा परद्रव्योंसे पृथक् अपनी सत्तामाश्रमें है, अतः वह परद्रव्योंका कर्ता कैसे हो सकता है ? टीकार्थ- यदि वास्तव में यह अात्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे, तो परिणाम-परिणामभावको अन्यथा अप्राप्ति होनेसे नियमसे नन्मय हो जाय, किन्तु अन्य द्रव्यको अन्य द्रव्य में तन्मयता होनेपर अन्य द्रव्य के नाशकी आपत्तिका प्रसंग मानेसे तन्मय है ही नहीं । इसलिये व्याप्यव्यापकभावसे तो उस द्रव्यका कर्ता आत्मा नहीं है । भावार्थ-यदि प्रात्मा अन्य द्रव्य का कर्ता होवे, तो पृथक्-पृथक द्रव्य क्यों रहें ? फिर तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप हो जावेगा, यों अन्य व्यका नाश हो जायगा यह बड़ा दोष प्राता जैसा कि है ही नहीं । इसलिये अन्य द्रव्यका कर्ता अन्य द्रव्यको कहना सत्यार्थ नहीं है निश्चयसे तो यही है कि प्रात्मा मात्र अपने गुणों में ही परिणाम सकता है, अन्य के गुणोंमें नहीं । प्रसंगविवरण--अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रात्मा परद्रव्यको करता है यह कथन व्यवहारसे है । अब इसी विषयमें इस गाथामें कहा है कि ऐसा व्यवहारकथन सत्यार्थ नहीं है। सध्यप्रकाश---(१) यदि प्रात्मा परद्रव्यको करे तो प्रात्मा परद्रव्यमय हो जायगा यह
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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